Book Title: Jain Dharmamrut Author(s): Siddhasen Jain Gpyaliya Publisher: Siddhasen Jain Gpyaliya View full book textPage 4
________________ * नमः सिध्धेभ्यै! जैन धर्मामृत ( प्रथम भाग ) 98419 १- सिद्धशिला. ( सिद्धों के रहने की जगह - ४५ लाख योजन प्रमाण १- अलोकाकाश. ( लोक्से बाहिर का आकाश ) १ - धर्म - ( जीव और पुद्गल को चलने में सहकारी ) १ - अधर्म ( जीव और पुद्गल को स्थिति में सहकारी ) १ - अंतराय बधकारण ( विघ्न करना ) १ - तिर्यंचायु पंधकारण( माया ) १ - एक अक्षरके मंत्र - अ ॐ ( पंचपरमेष्ठी वाचक ) ह्रीं ( २४ तीर्थंकर वाचक ) -अणु ( जिसका कोई टुकडा न हो सके । )Page Navigation
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