Book Title: Jain Dharmamrut
Author(s): Siddhasen Jain Gpyaliya
Publisher: Siddhasen Jain Gpyaliya

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Page 3
________________ - दो शब्द. प्रिय बंधुओ व बहनो! श्री जिनवाणी अगम है-वर्तमान में अनेकों शास्त्र हैं उनका स्वाध्याय करके जीव अपनी आत्मा का कल्याण करते हैं । उन्ही पूज्य शास्त्रों की ही कुछ अमूल्य वातें नवीन ढंग से इस पुस्तक में प्रगट कर पाठकों के सन्मुख उपस्थित की हैं आशा है कि यह पद्धति सबको पसंद पडेगी। इस पुस्तक का दूसरा भाग छप रहा है वह शीघ्र ही पाठकों की सेवा में भेजा जावेगा । मेरे आग्रह से प्रस्तुत पुस्तक का संशोधन पंडित अक्षय कुमारजी शास्त्री सुपरिन्टेन्डेन्ट शेठ केवलदास धनजी दिगम्बर जैन बोर्डिग प्रांतीजने किया है। अतः अशुद्धियां संभव नहीं है । तथापि समयाभाव से काई अशुध्धि रह गई हों उसे पाठक गण क्षमा कर कृतार्थ करेंगे। "भूषण भवन" सेवक:---- किरठल (मेरठ)) सा रत्न, सिद्धसेन जैन गोयलीय; निवासी. प्र० अध्यापक दि. जैन आश्रम, IS.S.LRY. जांबुडी. (हिम्मतनगर) A. P. Rs. . . .

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