Book Title: Jain Dharm Jivan aur Jagat
Author(s): Kanakshreeji
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 7
________________ मगल-संदेश प्रस्तुत पुस्तक मे जैन-धर्म के माध्यम से जीवन और जगत् को समझने का प्रयत्न है। जीवन को समझने के लिए जगत् को समझना जरूरी है और जगत् को समझने के लिए जीवन का समझना जरूरी है। दोनो मापेक्षता है, परस्परता है इसलिए एक यो समझे बिना दूसरे को समझा नहीं जा सकता। जगत् अस्तित्ववादी अवधारणा है और जीवन व्यवहारवादी अथवा उपयोगितावादी अवधारणा । जगत् का स्वरूप है-द्रव्यवाद । द्रव्य फी मीमामा करने वाले का दर्शन विशुद्ध, दृष्टिकोण समीचीन बन जाता है । दशन-शुद्धि आचार-शुद्धि का स्रोत बनती है । यह वचन मननीय है दयिए दसणसुद्धी दसणसुद्धस्स घरण तु । साध्वी कनवश्री ने द्रव्यवाद और आचारवाद-दोनो को एक माला में पिरोने का प्रयत्न किया है। यह साथक प्रयत्न है। जीवन और दर्शन की पो दिशागामिता वांछनीय नहीं है। अपेक्षा है जीवन-दर्शन की। दर्शनशून्य जीवन (आचार और व्यवहार) और जीवन-शून्य दर्शन समस्या का समाधान नहीं बनते । जीवन और दशन का समन्वित प्रयोग नई धारा हो सकती है, किन्तु आज यह उपेक्षित हो रही है। दर्शन-शास्त्र और आचारशास्त्र ये मध्य लक्ष्मण-रेखा पीचना सगत अभियोजन नहीं है। गणाधिपति श्री तुलसी ने साध्वी-समाज को अध्ययन, अध्यापन और लेपन की दिशा मे नई गति दी है। फलत अनेक साध्वियो के चरण इस दिगा में आगे बढ़े हैं । साध्वी कनकधी का हिन्दी भाषा पर अधिकार है और दमन एप आपार पे विषय का अध्ययन है। उनकी लेखनी ने भाषा और विषय-दोनो की सम्यग् योजना की है। विकास के लिए बहुत अवकाश है, किन्तु जो है, वह अपने बाप में रमणीय है, पाठय पे लिए उपयोगी है। आचार्य महाप्रज जन पिश्य भारती, सानू (राज.)

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