________________
बन पड़ा, "भाइयो तुम सब गलत कहते हो वह तो सचमुच चट्टान की नाई है।"
यदि कोई नेत्रो वाला व्यक्ति उपयुक्त नेत्र-हीनों की वार्ता सन रहा हो तो वह उनकी मूर्खता एव अज्ञानता पर अवश्य हंसेगा परन्तु वह इस तथ्य से इनकार नहीं करेगा कि प्रत्येक अधा "प्रांशिक सत्य" कह रहा है। पूर्ण सत्य अथवा हाथी का पूर्ण स्वरूप तो उन की बात को मिला कर होगा।
अतः परस्पर विरोधी प्रतीत होने वाले अपने दृष्टिकोणों को प्रमाणित रूप से स्वीकार करना "अनेकांतवाद है । अनेकान्त सिद्धांत को व्यक्त करने वाली "सापेक्ष भाषा पद्धति' ही स्याद्वाद है । "स्यात्' शब्द का अर्थ है 'कथंचित्' या "किसी अपेक्षा से"। जो लोग स्यात् का अर्थ 'शायद' करते है, यह उनकी भूल है ।
श्रोत्र (कान), चक्षु, घ्राण, (नासिका), रसना और स्पर्शन यह पाँच इन्द्रियां हैं।
5 'शब्द' श्रोत्रंद्रिय का विषय है। 4 'रूप' चक्षु इन्द्रय का विषय है । 3 'गंध' घ्राणेन्द्रिय का विषय है । 2 'रस' रसना इन्द्रिय का विषय है। 1 'स्पर्ग' स्पर्शेन्द्रिय का विषय है ।
'मन' इन्द्रिय नही है। इंद्रियों का क्षेत्र सीमित है। मन के लिए कोई क्षेत्र की मर्यादा सीमित नही है , वह क्षण भर में स्वर्ग नरक तथा अखिल विश्व का चक्कर काट लेता है। __भगवान् महावीर ने कहा- "हे गौतम । मन जड़ भी है और चेतन भी । द्रव्य मन बिजली का बल्ब है और भाव मन उसके प्रदर प्रवेश करने वाली बिद्य त है।