Book Title: Jain Bharati
Author(s): Shadilal Jain
Publisher: Adishwar Jain

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Page 146
________________ १४१ है । इस में विशेषता यह है कि इसकी हस्तिशाला इस प्रांगण के बाहर नही, किन्तु भीतर ही है। रग मण्डप, नवचौकी, गूढ-मण्डप और गर्म की रचना पूर्वोक्त प्रकार की है। कितु यहा रग मण्डप के स्तम्भ कुछ अधिक ऊँचे है और प्रत्येक स्तम्भ की बनावट व कारीगरी भिन्न है । भण्डप की छत कुछ छोटी है किन्तु इसकी रचना व उत्कीर्णन का सौन्दर्य 'विमल-वसही' से किसी प्रकार कम नही। इसके रचना सौंदर्य की प्रशसा करते हुए फर्ग सनसाहब ने कहा है:__ कि यहां संगमरमर पत्थर पर जिस परिपूर्णता, जिस लालित्य व जिस सतुलित अलंकरण की शैली से काम किया गया है, उसकी कही भी उपमा मिलना कठिन है ।' ___ इन मदिरो मे संगमरमर की कारीगरी को देख कर बडे-बडे कलाकार विशारद आश्चर्यचकित होकर दॉतो तले अगुली दबाये बिना नही रहते । यहा भारतीय शिल्पियो ने जो कला-कौशल व्यक्त किया है, उससे कला के क्षेत्र में भारत का मस्तिष्क सदैव गर्व से ऊँचा उठा रहेगा। कारीगर की छैनी ने यहाँ काम नहीं दिया । सगमरमर को घिसघिस कर उनमें वह सूक्ष्मता व कॉच जैमी चमक व पारर्दिशता लाई गई है, जो छैनी द्वारा लाई जानी असम्भव थी। 'कहा जाता है कि इन कारीगरो को घिस कर निकाले हुए सगमरमर के चूर्ण के प्रमाण से वेतन दिया जाता था। तात्पर्य यह कि इन मन्दिरों के निर्माण से 'एच० जिम्मर' के शब्दो मे - __'भवन नै अलन्कार का रूप धारण कर लिया है, जिसे शब्दो में समझाना असम्भव है' (3) पित्तलहर:-- लूण-वसही से पीछे को मोर पित्तलहर नामक जैन मन्दिर, है जिसे

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