Book Title: Jain Bharati
Author(s): Shadilal Jain
Publisher: Adishwar Jain

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Page 147
________________ १४८ गुर्जर वश के 'भीमाशाह' ने 15वी शती ई० के मध्य में बनवाया । यहाँ के वि० स० 1483 के एक लेख में कुछ भूमि व ग्रामों के दान दिये जाने का उल्लेख है, तथा वि० स० 1489 के एक अन्य लेख मे कहा गया है कि 'आबू के चौहान वन्शी राजा राजधर देवड़ा चुन्डा ने यहाँ के तीन उपरोक्त मन्दिरो की तीर्थ-यात्रा को आने वाले यात्रियों को सदैव के लिये कर से मुक्त कर दिया ।' इस मन्दिर के पित्तलहर नाम पडने का कारण यह है कि यहाँ आदिनाथ तीर्थकर की 108 मन पीतल की मूर्ति प्रतिष्ठित है । इस मूर्ति की प्रतिष्ठा स० 1525 मे 'सुन्दर और गडा' नामक व्यक्तियो ने कराई थी । ये दोनो अहमदाबाद के तत्कालीन सुलतान महमूद बेगडा के मन्त्री थे । इस मन्दिर की बनावट भी पूर्वोक्त मन्दिरो जैसी है । यहाँ भगवान् महावीर मन्दिर के मुख्य गणधर गौतम स्वामी की पीले पाषाण की मूर्ति है । (4) चौमुखा मन्दिर: चौमुखा मन्दिर मे भगवान् पार्श्वनाथ की चतुमुखी प्रतिमा प्रतिष्ठित है । यह मन्दिर 'खरतर वसही' भी कहलाता है । कुछ मूर्तियो पर के लेखों से इस मन्दिर का निर्माण-काल वि०स० 1515 के लगभग प्रतीत होता है । यह मन्दिर तीन तल्ला है, और प्रत्येक तल पर भगवान् पार्श्वनाथ की चौमुखी मूर्ति विराजमान है । ( 5 ) महावीर मन्दिर: देलबाडा से पूर्वोत्तर दिशा मे कोई पाच किमी. की दूरी पर यह मन्दिर स्थित है । इसका निर्माण 15वी शताब्दी से हुआ था । इसमें आदिनाथ, शान्तिनाथ और पाश्र्वनाथ तीर्थकरो की मूर्तिया है, किन्तु मन्दिर की ख्याति महावीर नाम से ही है । अनुमानतः बीच में कभी

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