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का तो संचय किया जाये परन्तु क्षात्रबल और राजनीति बल की उपेक्षा की जाये तो यह नितांत अधूरा व्यक्तित्व होगा।
देश की राजनीति और सैन्य-बल से संन्यास लेकर हम कैसे जीवित रह सकते है ? जो मरना नही जानता वह जीना भी नही जानता । ऐसे व्यक्ति को जीने कौन देगा ? अगर वह जियेगा भी तो पाख-बद-कान-बंद व्यक्ति के समान । भला यह भी कोई जीवन है ?
उठो, खडे हो जाओ। महावीर की 25वी निर्वाण शताब्दी में एक करवट बदलो । अपनी सतानों को अधिक से अधिक संख्या में वायु-सेना, जल-सेना, थल-सेना में भर्ती करायो । मृत्यु केवल सैनिक को ही नही दबोचती, अपने समय पर यमराज सभी जीवो को अपने पाश में फासते है।
2500 वीं महावीर निर्वाण जयन्ती पर आप मोह जाल को फेकिये और नौजवान बच्चो को मैदान में आने दीजिये । उन्हे महावीर का वीर सैनिक बनने दीजिये, सिह को अपना तेज प्राप्त करने दीजिये। 'सुखे-समाधे' और 'सुख-साता' की चाह के स्थान पर बच्चो को मृत्यु से जूझने की शिक्षा दीजिये । बच्चों की धमनियो में जो नया खून दौड़ रहा है और वह कुछ जोखिम के काम करना चाहता है, इसकी उसे अनुमति दीजिये । महावीर की संतान कमजोर क्यो बने ? वीर-शावक तुमुल नाद से जागा है आप उसे प्रोत्साहन दीजिये ।
(xi) अनुभवी वृद्ध पुरुषों का नेतृत्व:
50 से 70 वर्ष की अवस्था के महाजन ध्यान से सुन ले। अब वे संसार से कितना 'रस' पौर लेना चाहते है ? बहुत हो चुका । आपने आवश्यकता से अधिक इस संसार के सुखो को देख लिया । यह ससार किसी दिन अचानक आपको लूट लेगा, हड़प लेगा। कुछ नेक कमाई कीजिये । आपकी बुद्धि ठीक, शरीर बल कायम, 'सतान आपकी योग्य,