Book Title: Jain Bharati
Author(s): Shadilal Jain
Publisher: Adishwar Jain

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Page 139
________________ १३८ 3. हुवच.तीर्थहल्लि के समीप 'हुवच' अथवा हुमच एक अति प्राचीन जैन केद्र रहा है। ई० सन् 897 के एक लेख मे वहाँ के मन्दिर 11वी शती मे 'वीर सातर' आदि सातरवशी राजानो द्वारा निर्मापित पाये जाते है । इनके द्राविडशैली की अलकरण रीति तथा सुन्दरता से उत्कीर्ण स्तम्भो की सत्ता पाई जाती है । जैन मठके समीप भगवान आदिनाथ का मन्दिर विशेष उल्लेखनीय है। इस मन्दिर मे दक्षिण भारतीय शैली की 'कास्य मूर्तियो' का अच्छा संग्रह है। इसी मन्दिर के समीप बाहुबलि मन्दिर टूटी फूटी अवस्था मे विद्यमान है। तीर्थहल्लि के मार्ग पर 3000 फुट ऊ ची 'गुड्ड' नामक पहाडी पर एक प्राचीन जैन तीर्थ सिद्ध होता है। एक पार्श्वनाथ मन्दिर' अब भी इस पहाडी पर शोभायमान है जिस मे भगवान पार्श्वनाथ की विशाल कायोत्सर्ग मूर्ति पर नाग के दो लपेटे स्पष्ट दिखाई देते है जो सिर पर सप्तमुखी छाया किये हुए है। पहाड़ा से उतरते हुए जगह जगह जैन मन्दिरो के ध्व सावशेष मिलते है। तीर्थकरो की सुन्दर मूर्तियाँ व चित्रकारीयुक्त पापारगखण्ड प्रचुरता से यत्र-तत्र बिखरे दिखाई देते है, जिससे इस स्थान का प्राचीन समृद्ध इतिहास आँखो के सामने भूल जाता है । ___4. लकुन्डी. धारवाड जिले मे, गडग रेलवे स्टेशन से सात मील द.क्षण पूर्व की और लकुन्डी (लोक्कि गुन्डी) नामक ग्राम है जहाँ दो मुन्दर जैन मन्दिर है इनमे के बड़े मन्दिर में सन् 1172 ई० का शिलालेख है । यहाँ भगवान महावीर की बडी सुन्दर मूर्ति विराजमान थी जा इधर छ वर्षों से दुर्भाग्यतः विलुप्त हो गई है । भीतरी मण्डप के द्वार

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