Book Title: Jain Bharati
Author(s): Shadilal Jain
Publisher: Adishwar Jain

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Page 142
________________ १४१ जिससे स्पष्ट है कि उस समय तक वह बौद्ध-केन्द्र नही बना था। अतः उपरोक्त ताम्रपट लेख' से यह सिद्ध होता है कि 'यह पाचवी शती में जैन विहार था और इम स्थान का प्राचीन नाम वट-गोहाली (वट-गुफा-पावली) था'। कहा जा चुका है कि षट्खण्डागम के प्रकाण्ड विद्वान् टीकाकार वीर सेन और जिनसेन इसी पश्चस्तूपान्वय के प्राचार्य थे और यह जैन विहार महान् विद्या-केन्द्र रहा था। 8 देवगढ (मध्य भारत): देवगढ ललितपुर जिले के अतर्गत ललितपुर रेलवे स्टेशन से 19 मील तथा जाखलौन स्टेशन से 19 मील दूर बेतवा नदी के तट पर है । देवगढ की पहाडी कोई डेढ मील लम्बी व छ फाग चौडी है । इनमे अधिकॉश जैन मन्दिर है जिनकी संख्या 31 है। इनमे मूर्तियो, स्तम्मो, दीवालो, शिलामो आदि पर शिला लेख भी पाये जाते है जिनसे सिद्ध होता है कि ई० 8वी शती से 12वी गती के बीच इनका निर्माण हुआ । ___ सब से बड़ा बारह नम्बर का शान्ति नाथ मदिर है, जिसके गर्भ गृह में 12 फुट ऊँची खड गासन प्रतिमा है । एक स्तम्भ पर भोजदेव के काल (वि० स० 919 मुताबिक ई० 862) का एक लेख भी उत्कीर्ण है। लेख में वि० स० के साथ साथ शक स० 784 का भी उल्लेख है। बडे मण्डप में बाहुबलि की मूर्ति है, यही मदिर यहाँ का मुख्य देवालय है। पाँचवाँ मदिर सहस्रकूट चैत्यालय है जो बहुत कुछ बचा हुआ है। उसके कूटो पर कोई 1008 जिन प्रतिमाएं उत्कीर्ण है। 'पुरातत्व विभाग को रिपोर्ट के अनुसार देवगढ़ से कोई 200 शिलालेख मिले है, जिनमें से 60 में उनका लेखन-काल भी प्रकित है,

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