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जिनसे वे वि० सं० 919 से 1876 तक के पाये जाते हैं । तात्पर्य यह कि इस क्षेत्र का महत्व 19वी शत तक बना रहा ।
9 खजुराहो:
महोबा से 34 मील दक्षिण की ओर खजुराहो स्थित है। मध्य भारत का यह दूसरा देवालय नगर है। यहाँ जैन मदिरो मे तीन विशेष उल्लेखनीय है-पार्श्वनाथ, आदिनाथ और शान्तिनाथ । इन मे पार्श्वनाथ मंदिर सब मे बड़ा है।
खजुराहो के जैन मदिरो की विशेषता यह है कि इन में मण्डप की अपेक्षा शिख र की रचना का ही अधिक महत्व है।
ग्वालियर राज्य मे ग्यारसपूर मे भी एक भग्न जैन मदिर का मण्डप विद्यमान है जो अपने विन्यास व स्तम्भो की रचना आदि में खजुराहो के घण्टाई मण्डप के ही सदृश है ।
10. सुवर्णगिरि (सोनागिरि), मुक्तागिरि, कुण्डलपुर:
मध्यप्रदेश में तीन और जैन तीर्थ है जहाँ पहाडियो पर अनेक प्राचीन मदिर बने हुए है। बुन्देलखड मे दतिया के समीप सुवर्णगिरि (सोनागिरि) है जहा 100 छोटे बडे जैन मदिर है।
मुक्तागिरि तीर्थ क्षेत्र बैतूल के अंतर्गत है । अति सुन्दर पहाडी की घाटी के समतल भाग में कोई 20-25 जैन मंदिर है जिनके बीच लगभग 60 फुट ऊँचा जलप्रपात बहता है। अग्रेज इतिहासकार जेम्स फर्गुसन ने लिखा है:
‘समस्त भारत में इसके सदृश दूसरा स्थान पाना दुर्लभ है, जहां प्रकृति की शोमा का वास्तुकला के साथ ऐसा सुन्दर सामन्जस्य हुआ
मध्यप्रदेश का तीसरा जैन तीर्थ दमोह के समीप कुण्डलपुर