Book Title: Jain Bharati
Author(s): Shadilal Jain
Publisher: Adishwar Jain

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Page 137
________________ श्रध्याय 15 (ग) जैन कला और पुरातत्व -------- जैन स्तूप: गया था। पूरा स्तूप मथुरा के 'कंकाली टोले की खुदाई से जैन स्तूप का जो भग्नावशेष प्राप्त हुआ है, उससे उसके मूलविन्यास का स्वरूप प्रकट हो जाता है । स्तूप लगभग गोलाकार था जिसका व्यास 47 फुट पाया जाता है । यह स्तूप छोटी बडी ईटो से बनाया कैसा था, इसका कुछ अनुमान बिखरी हुई प्राप्त सामग्री के माधार पर लगाया जा सकता है। इसके अनेक प्रकार की चित्रकारी युक्त पाषाण मिले हैं । दो ऐसे 'प्रयागपट' मिले हैं, जिनपर स्तूप की पूर्ण. आकृतियाँ चित्रित हैं । स्तूप की गुम्मट पर छः पक्तियो का एक लेख है' जिस मे श्रहंत वर्द्धमान को नमस्कार के पश्चात् कहा गया है कि 'श्रमरण-श्राविका आर्यावरणशोभिका नामक गरिएका की पुत्री श्रमण-श्राविका वासु गणिका ने जिनमन्दिर मे ग्रर्हत की पूजा के लिये अपनी माता, भगिनी तथा दुहिता-पुत्री सहित निर्ग्रथो के अरहन्त प्रायतन में अरहंत का. देवकुल (देवालय) आयाग तथा प्रपा (प्याऊ ) तथा शिलापट प्रतिष्ठित कराये ।' 1 यह शिलापट अक्षरों की आकृति व चित्रकारी द्वारा अपने को कुषाण कालीन ( पहली - द्वितीय शताब्दी) सिद्ध करता है । "विवंघतीर्थं कल्प' में लिखा है कि इस स्तूप का भगवान् पाखं नाम के समय (877-777 ई० पू० ) मे जीर्णोद्धार कराया गया ।

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