Book Title: Jain Bharati
Author(s): Shadilal Jain
Publisher: Adishwar Jain

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Page 138
________________ रूप मे सुरक्षित नही रह सका । इसका बहुत कुछ अश ध्वस्त हो चुका है । तथापि इसका इतना भाग फिर भी सुरक्षित है कि जिससे उसकी योजना व शिल्प का पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। -मन्दिर शैलीगुप्त व चालुक्य युग से पश्चात्कालीन वास्तुकला की शिल्प शास्त्रो मे तीन शैलिया निर्दिष्ट की गई हैं. 1. नागर 2. द्राविड 3. वेसर सामान्यत: 'नागर शैली' उत्तर भारत मे हिमालय से विन्ध्य पर्वत तक प्रचलित हुई। 'द्राविड शैली दक्षिण में कृष्णा नदी से कन्याकुमारी तक तथा 'वेसर' मध्यभारत में विन्ध्यपर्वत और कृष्णा नदी के बीच विस्तत हुई । किन्तु यह प्रादेशिक विभाग कडाई से पालन किया गया नही पाया जाता । प्रायः सभी शैलियो के मन्दिर सभी प्रदेशो में पाये जाते है. तथापि प्राकृति-वैशिष्टय को समझने के लिये यह शैली-विभाजन सिद्ध हुआ है। आगामी काल के हिन्दू व जैन मन्दिर इन्ही गैलियो, विशेषतः नागर व द्रविड शैलियों, पर बने पाये जाते है । ऐहोल का मेघुटी जैन मन्दिर, जिसका पीछे वर्णन किया गया है, द्राविड शैली का सर्व प्राचीन मन्दिर कहा जा सकता है । इस शैली का विकास दक्षिण के नाना स्थानो मे पूर्ण अथवा ध्वस्त जैन मन्दिरों में देखने को मिलता है।

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