Book Title: Jain Bharati
Author(s): Shadilal Jain
Publisher: Adishwar Jain

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Page 132
________________ १३१ बनी है । इस गुफा को सहस्रकणो वाली पाश्वनाय की प्रतिमा कला की दृष्टि से बड़ी महत्वपूर्ण है। अन्य जैन प्राकृतियां व चिन्ह भी प्रचुर मात्रा में विद्यमान है । सिंह, मकर व द्वारपालों की प्राकृतिया भी कलापूर्ण हैं और एलिफेंटा कलाकृतियों का स्मरण कराती है। गुफाओ से पूर्व की प्रोर वह 'मेघुटी' नामक जैन मन्दिर है जिसमे चालुक्य नरेश पुलकेशी' 'शक सं0 556' (ई० 634) का उल्लेख है। यह शिलालेख अपनी सस्कृत काव्यशैली के विकास में भी अपना स्थान रखता है । इस लेख के लेखक रवि कीति ने अपने को काव्य के क्षेत्र मे कालिदास और भारवी की कीर्ति को प्राप्त कहा है। 'कालिदास व भारवि के काल-निर्णय में यह लेख बड़ा सहायक प्रा है, क्योकि इसी से उनके काल की अतिम सीमा प्रामाणिक रूप से निश्चित हुई है। ऐहोल सम्भवत: 'आर्यपुर' का अपभ्रष्ट है। 12. एलोरा: यह स्थान यादवनरेशो की राजधानी देवगिरि (वर्तमान दौलताबाद) से लगभग 16 मील दूर है और वहाँ का शिलापर्वत अनेक गुफा मदिरो से अलकृत है। यहां 'कैलाश' नामक शिव मदिर है जिसकी योजना और शिल्प कला इतिहास-प्रसिद्ध है। यहा बौद्ध, हिंदू व जैन तीनो सम्प्रदायो के शैल मदिर बड़े सुन्दर प्रणाली में बने हुए है। यहा पाच जैन गुफाए है जिनमे से तीन-~-'छोटा कैलाश, इन्द्र सभा, जगन्नाथ सभा'-कला की दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण है। 'छोटा कैलाश' एक ही पाषाण शिला को काट कर बनाया गया है । मंदिर 80फुट चौडा व 130 फुट लम्बा है मण्डप लगभग 36 फुट लम्बा चौडा है और उसमें 16 स्तम्भ है । 'इन्द्रसभा' नामक गुफामदिर में 32 फुट ऊंचा ध्वज स्तम्भ है।

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