Book Title: Jain Bharati
Author(s): Shadilal Jain
Publisher: Adishwar Jain

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Page 118
________________ "प्राकुमारं यश: शाकटायनस्य" अर्थात् शाकटायन का यश राजा'कुमार पाल" तक ही रहा है क्योंकि तब तक "सिद्ध हेमचन्द्र शब्दानुशासन" न रचा गया था पौर न प्रचार में आया था। हेमचद्राचार्य ने इसके अतिरिक्त निम्न विषयों पर अनेको प्रथ रचे : 1. कोश 2. साहित्य अलकार 5. इतिहास काव्य 6. उपदेश स्तोत्र 9. नीति 3. छद 7. योग 4. दर्शन 8. स्तुति उस समय के विद्वत्समाज ने इस सरस्वती पुत्र को "कलिकाल सर्वज्ञ' की उपाधि से विभूषित किया था। व्याकरण (प्राकृत) स्वाभाविक बोलचाल की भाषा को प्राकृत कहते हैं । प्रदेशों की अपेक्षा से प्राकृत के अनेक भेद है । प्राकृत का अन्य स्वरूप अपभ्रंश कहलाता है। इसका प्राचीन देशी भाषामो से सीधा सम्बन्ध है। इसका व्याकरण स्वरूप ई. छटी-सातवी शताब्दी से निश्चित हो चूका था। महाकवि स्वयम्म ने अपभ्रंश भाषा की रचना ई. 8वी शताब्दी में की थी जो आज उपलब्ध नही है। प्राचार्य हेमचद्र ने अपने समय के प्रवाह को देखकर अपभ्रंश व्याकरण' के लगभग 120 सूत्रो की रचना की थी तथा उसके भिन्न विषयों पर वृत्तियां भी लिखीं। चण्ड नामक विद्वान् कृत्त प्राकृत लक्षण जिसमे 99 सूत्र है सक्षिप्ततम व्याकरण है। चण्ड ने स्वय इस पर वत्ति भी लिखी।

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