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के पश्चात् वह 'अहिंसा धर्म" पर आचरण करने लगा था। Early Faith of Asoka नामक पुस्तक के अनुसार अशोक ने अहिसाविषयक जो नियम प्रचारित किये, वे बौद्धों की अपेक्षा जैनो के साथ अधिक मेल खाते थे । "पशु पक्षियो को न मारने, वनो को निरर्थक न काटने और विशिष्ट तिथियो एवं पर्यो में जीवहिसा बद रखने आदि के आदेश जैन धर्म से मिलते हैं।"
सम्प्रति अशोक की मृत्यु के पश्चात् मौर्य साम्राज्य दो भागों में बट गया। उत्तर पूर्वी भाग पर उसका पुत्र "दशरथ' अधिकार करके बैठ गया और पश्चिमीय भाग पर “सम्प्रति" का अधिकार हो गया। सम्प्रति ने अपने पिता के अनुसार यह अनुभव किया कि नरसहार करके प्राप्त की गई विजय, सच्ची विजय नही है । सच्ची शान्ति अहिंसा के द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है"।
अत: सम्प्रति ने प्रख्यात जैन मुनि "आर्य सुहस्ति" से जैन धर्म अगीकार किया। सम्राट् सम्प्रति ने अनायं देर्शो में जैन धर्म के उद्देश्य से जैन धर्माराधको के लिए धर्म स्थानो की व्यवस्था करवाई। अनार्य प्रजा के उत्थान के लिये सम्प्रति ने महत्वपूर्ण कार्य किया। उसने वहा धर्म-प्रचारक भेजकर जैन धर्म की शिक्षाएं प्रसारित की ।
अनेक विद्वानों का मत है कि आज जो शिला लेख अशोक के नाम से प्रसिद्ध है, सम्भव है उन अनार्य देशो में वे सम्राट् मम्प्रति के लिखवाये हुए हो।
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