Book Title: Jain Bharati
Author(s): Shadilal Jain
Publisher: Adishwar Jain

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Page 69
________________ खारवेल ने सारे भारत पर विजय प्राप्त की थी। "पाण्ड्य देश" के राजा से लेकर "उत्तरापथ" तक तथा 'मगध' से लेकर "महाराष्ट्र' तक उनकी विजय-वैजयती फहराई थी। उस समय खारवेल सार्वभौम सम्राट हो गये थे । इनका प्रताप एक बार तो चद्रगुप्त और अशोक सा चमका था। उनका सैन्य-संचालन बहुत ऊँचे दर्जे का था। "सचमुच वह भारतीय नेपोलियन थे।" खारवेल प्रजा-वत्सल सम्राट थे। उन्होने “पौर" और "जनपद" संस्थाओं को स्थापित करके प्रजा की सम्मति के अनुकूल शासन किया था। "पौर" सस्था का सम्बन्ध राजधानी और नगरों के शासन से था । 'जनपद' सस्था ग्रामो का शासन करने के लिये नियुक्त थी। "इस प्रकार शासन का भार जनता के कंधों पर था।" यही कारण है कि कलिग से बाहर लड़ाइयो में लगे रहने पर भी खारवेल के शासन-प्रबन्ध में किसी प्रकार की गडबड न होने पाई थी, बल्कि कलिंग की समृद्धि में आशातीत वृद्धि हुई थी। सम्राट् खारवेल का ध्यान धर्म-वृद्धि की ओर विशेषतया गया। उन्होने "कुमारी पर्वत" पर जैन मुनियो के लिये गुफाएँ और मंदिर बनवाये । यह वही कुमारी पर्वत है जहां पर भगवान् महावीर ने धर्मामृत की वर्षा की थी। ___इस पर्वत पर खारवेल ने जैन धर्म का "महा धर्मानुष्ठान" किया। इस सम्मेलन में समस्त भारतवर्ष के जैन यति, ऋषि और पण्डितगण सम्मिलित हुए थे । वहाँ विशेष धर्म-प्रभावना हुई थी ।इसी सुवर्ण अवसर पर जैनागम के पुनरुत्थान का उद्योग हुआ था । इस महान् अवसर पर अखिल जैन संघ ने सम्राट् खारवेल को उसकी महान्विजयो के कारण निम्न पदवियों से विभूषित किया था:

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