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सम्पाव
जैन धर्म का विकास-कारण
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भगवान् महावीर की सच्ची पोर सादा तालीम तथा उनके शुद्ध माचरण का भारतीय जनता के समस्त वर्गों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। समाज के पिछड़े हुए पददलित तथा उपेक्षित वर्ग को वीर-वारणी' सुखद और प्रिय लगी। उस समय पांव-की-जूती समझी जाने वाली स्त्री-समाज को पुरुष समाज के समकक्ष खड़ करके 'समान अधिकारों की जो बात महावीर ने कही वही सामाजिक कांति का नाद था। धर्म के नाम पर पशु-पक्षियों की बलि, जीवहिंसा, माडम्बरवाद, जाति-अभिमान, असमानता, असहिष्णुता-ये भारतीय समाज के 'कलंक' थे। महावीर ने जब यह सब कलंक घो डाले तो उसका व्यापक प्रभाव पड़ा। 'अहिंसा धर्म' की दुंदुभि चहुं मोर बज उठी। जैन धर्म जन-जन का धर्म बन गया। जैन धर्म का विकास निम्न कारणों से हुमा:
(i) मध्य मार्ग:जैन धर्म प्रत्येक आदमी को उसकी शक्ति और भावना के अनुसार धर्माचरण करने का उपदेश देता है । 'मुनि' और 'गृहस्थ' का अलग अलग विधान बनाकर तथा 'देश' 'काल' 'भाव के अनुसार पाचरण करने की छूट देकर सतुलित समाज की बुनियाद डाली।
(ii) समन्वयःजैन धर्म ने भिन्न-भिन्न विचारों का सापेक्ष दृष्टि से समन्वय किया। भिन्नता में एकता (Unity in Diversity) को समाज में