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अध्याय
सम्राट् खारवेल
8 ख
[राज शक्ति का अहिसा प्रचार में योगदान]
अब हम एक ऐसे भारतीय सम्राट का उल्लेख करेंगे जिसने अपने बाहुबल से लगभग सारे भारत को जीता और अपने सुकृत्यों से शूरवीरता और धर्मवीरता की एक ऐसी यादगार छोडी जो जैनधर्म के लिये अत्यंत गौरव की बात है।
प्राचीन काल में 'उड़ीसा' नामक भारती प्रात "कलिग देश" के नाम से सुप्रसिद्ध था। प्रागऐतिहासिक काल मे भगवान् ऋषभदेव के एक पुत्र वहा के शासनाधिकारी थे। जिस समय भगवान ऋषभदेव कलिंग मे धर्मोपदेश करने पहुचे तो वहाँ के राजा राजपाट छोड़कर मुनि बन गये । तत्पश्चात् दीर्घ काल तक "कौशल" का राजवश ही कलिंग पर शासन करता रहा।
सम्राट् ‘ऐल', खारवेल के पूर्वज, चेदि राष्ट्र तथ । दक्षिण कौशल से आकर कलिंग पर राज करने लगे। उनका 'ऐल' विरद उन्हे उत्तर कौशल के "ऐलेय" राजा से सम्बधित करता है।
जब खारवेल ने सोलहवे वर्ष में कदम रखा तो अकस्मात् उनके पिता की मृत्यु हो गई । राज्य प्रथानुसार २५ वर्ष की आयु में उनका राज्याभिषेक हुआ। उन्होने प्राचीन "तोसली' (टोसाली) को ही अपनी राजधानी बनाये रखा । सिहासन पर बैठते ही उन्होंने अनेक प्रजाहितार्थ कार्य किये। पुरानी इमारतों का जीर्णोद्धार, सिचाई के