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अध्याय
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भगवान् महावीर
[आध्यात्मिक सैनिक सेवा - दल ]
भगवान महावीर ने 'मानवता के मुख को उज्ज्वल करने के लिये भारतीय समाज को "अहिंसा" का जो कवच प्रदान किया उसका विशेष सद्प्रभाव पड़ा। उनके " अहिसा - आन्दोलन" की विहारभूमि अधिकतर मगध एव उसके आसपास का क्षेत्र रही । उन्होने एक ऐसा निःस्वार्थ सैनिक दल तैयार किया जिसकी 'धर्म - घोषणा' का प्रभाव मगध ( बगाल, बिहार ), उड़ीसा, उत्तरी भारत, मध्य प्रदेश, पश्चिमी भारत, दक्षिण तथा सुदूर दक्षिणी प्रातों पर विशेष रूप से पड़ा । इसके फलस्वरूप समय समय पर कई शताब्दियों तक, अहिसक मुनियो या साधुप्रो ऐसे 'कर्मठ नेता' (आचार्य), मैदान में आते रहे जिन्होने 'अहिंसा, को समाज में प्रतिष्ठित करने के लिये जी-जान से कार्य किया ।
इन आचार्यों की प्रकाण्ड विद्वत्ता, उच्च आदर्श, तप त्यागमय जीवन तथा ओजस्विनी वारणी का प्रभाव 'राजा से लेकर रंक तक पड़ा । जन-जन के प्राचार विचार में एक सद्ाति आई । फलतः कर्त्तव्यशीलता, प्रेम, सहिष्णुता और समानता की भावनाओ को संपुष्टि मिली । समय समय पर धर्म - वाचनाए ( धर्म सभाए ) करके कुछेक प्राचार्यो ने भगवान् महावीर की दिव्य वाणी को संकलित किया जिसने 'आगम' का रूप धारण किया । आचार्य भद्रबाहु स्वामी तक बिना किसी मतभेद के, अबाध गति से, 'वीर वाणी' का प्रसार हुआ ।