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त्मिक लक्ष्य सिद्धि के लिये अथवा मोक्ष के लिए मृत्यु का भी समाधि पूर्वक वरण करो ।
भगवान् महावीर ने “मृत्यु विज्ञान" के विशद विवेचन मे मत्यू १७ प्रकार बताये है । इनमें इंद्रियाधीन, कषायाधीन, शोकाधीन, मोहाधीन होकर मृत्यु को प्राप्त होना ऐसा है जैसा किसी गृद्ध, बाज श्रादि ने किसी निरीह पक्षी - शावक को नोच दबोच लिया हो और उसे अपना ग्रास बना लिया हो । अन्त में 'समाधि - मरण' को उत्कृष्ट बतलाया गया है |
प्राणकारी सकट, दुर्भिक्ष, बुढ़ापा अथवा असाध्य रोग होने पर जब जीवन का रहना सम्भव प्रतीत न हो तो उस समय समाधिमरण गीकार किया जाता है । इसे " मृत्यु महोत्सव" की भावपूर्ण संज्ञा दी गई है ।
समाधिमरण अंगीकार करने वाला महासाधक सब प्रकार की मोह ममता को दूर करके शुद्ध आत्मस्वरूप के चितन में लीन होकर समय गुजारता है । उसे नीचे लिखे दोषो से बचने के लिये सतर्क रहना होगा ।
१. इस ससार के सुखो की कामना करना ।
२. परलोक के सुखो की इच्छा करना ।
३. समाधिमरण के समय पूजा प्रतिष्ठा देख अधिक जीने की इच्छा करना ।
4. भूख, प्यास, रोगजनित व्याधि से कातर होकर जल्दी मरने की इच्छा करना ।
5. इन्द्रियो के भोगों की प्राकांक्षा करना ।
सांसारिक भोगोपभोगो को त्यागकर श्रात्म भाव में रमण करने वाले वीर पुरुष मृत्यु से भयभीत नही होते वरन् उसे अपना मित्र समझते है । इस महान् कला को याद रखने और इस पर श्राचरण करने में ही हमारा हित है ।