Book Title: Jain Bharati
Author(s): Shadilal Jain
Publisher: Adishwar Jain

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Page 42
________________ ३६ वास्तव मे जन्म-मरण का मुख्य कारण कषाय हैं। कषाय के प्रभाव में मन-वचन-काय के योग लंगडे हो जाते है । कषायो का अन्त होते ही आत्मा को पूर्णत्व प्राप्त हो जाता है और 'घातिक कर्मो' का विध्वस हो जाता है। ___ 'घातिक' और 'अघातिक, शब्दो से कर्मों की आक्रमण शक्ति (बर्बरता और मदता) को सूचित किया गया है। जीव की अनंत दर्शनज्ञान- आदि शक्तियो का घात (ह्रास) करने वाले कर्म 'घातिक' कहलाते है । परन्तु जो कर्म जीव के गुण विकास में बाधक नही होते अथवा व्याघात नही पहुँचाते वे अघातिया कर्म कहलाते हैं । स्वभाव के आधार पर 'कर्म' के आठ विभाग किये जाते हैं : १ ज्ञानावरण २. दर्शनावरण ३. वेदनीय ४. मोहनीय ५. आयुष्य ६. नाम ७. गोत्र ८. अतराय -ज्ञानावरण के हटने से प्रात्मा में अनत ज्ञान शक्ति प्रकट होती है। -दर्शनावरण के हटने से अनत दर्शन शक्ति जाग्रत होती है । -वेदनीय का क्षय 'अनत सुख' प्रकट करता है। –मोहनीय कर्म की जकड़ प्रबलतम होती है। इसके क्षय होने से 'परिपूर्ण सम्यक्त्व और चारित्र' का प्रादुर्भाव होता है । -आयुष्कर्म के क्षय से 'अजर-अमरता की अनतकालीन स्थिति' (सिद्धगति) प्राप्त होती है। -नाम कर्म के क्षय से 'अमूर्तत्व गुण' प्रकट होता है जिसे मुक्तात्मा एक ही जगह अवगाहन कर सकते है। -गोत्र कर्म के क्षय से अगुरुलघुत्व गुण प्राप्त होता है । --अन्तराय के क्षय से अनन्त शक्ति (बलवीर्य) व विपुल लाम प्राप्त होता है।

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