Book Title: Jain Bal Bodhak 03
Author(s): Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 10
________________ जैनवालवोधकरत्ननयको भूल न जावें, इसी लिये उपनयन करें। ब्रह्मचर्यको दृढतम पालें, सप्त व्यसनका त्याग करें ॥४॥ नीति मार्ग पर नित्य चलें हम, योग्याहार विहार करें । पाले योग्याचार सदा हम, वर्णाचार विचार करें ॥५॥ धर्म मार्ग अरु वैध मार्ग से, देशोद्धार विचार करें। आर्षे वचन हम दृढतम पाले, सत्सिद्धांत प्रचार करें।॥ ६ ॥ श्री जिन धर्म वटै दिन दुनो, पंच आप्तनुति नित्य करें। सत्संगतिको पाकर स्वामिन्, कर्म फलंक समूल हरें ॥७॥ फलें भाव ये सभी हमारे, यही निवेदन करते हैं । "लाल" वाल मिल भाल वीरके, चरणों में हम घरते हैं।।८॥ २ भूधरकृत स्तुति संग्रह. आदिनाथ स्तुति । सवैया ३२ मात्रा। ज्ञान जिहाज बैठ गनघरसे, गुणपयोघ जिस नाहि तरे हैं। अमर समूह आन अवनीसौं, घसि २ सीस प्रनाम करे हैं । किधौं माल कुकरमकी रेखा, दूर करनकी बुद्धि धरे हैं । ऐसे आदिनाथके अहनिस, हाथ जोरि हम पांय परे हैं । · चंद्रप्रभस्तुति । सवैया मात्रा ३२ । चितवत वदन अमेल चंद्रोपम, तजि चिंता चित होय अकामी। त्रिभुवनचंद पापतपचंदन, नपत चरन चंद्रादिक नामी ॥ १ रात्रि दिन ! • निर्मल चंद्रमाके समान । ३ इच्छारहित । ४ पापंरूपी आतापकेलिये चन्द्रमाके समान । -

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