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(११) दाँता के पर्वत से प्राप्त करने में बहुत ही अवरोध आये थे। कारीगरोने जीणेद्धार का व्यय पचास रूपये घनफुट बताया था किन्तु उसका खर्च बढते-बढते पचास को जगह दो सौ रुपये प्रतिघनफुट आया फिर भी प्रतिकृति इतनी सुन्दर बनी कि कस्तूरभाई की कलाप्रेमी आत्मा प्रसन्न हो गयी और अधिक व्यय की उन्होंने तनिक भी चिन्ता नहीं की। शत्रुजयतीर्थ में उन्होंने पुराने प्रवेशद्वार के स्थान पर नया द्वार बनवाया और मुख्य मन्दिर की भव्यता में अवरोध करने वाले छोटे-छोटे मन्दिर और उनकी मूर्तियों को बीच में से हटवा दिया ।
जिस प्रकार धर्मदृष्टि उद्घाटित होते ही जीवन दर्शन के क्षितिजों का विस्तार होता है उसी प्रकार जीर्णोद्धार के बाद इन धर्म स्थानों के क्षितिज भी विस्तृत हो गए।
एक अमेरिकन यात्री ने एक बार कस्तूरभाई से पूछा---- यदि कल ही आपकी मृत्यु हो जाय तो....! कस्तूरभाईने सस्मित कहा : मुझे आनन्द होगा। किन्तु बाद में क्या ? बाद में क्या होगा उसकी मुझे चिन्ता नहीं है । आपका क्या होगा उसका विचार नहीं आता है क्या ! मैं पुनर्जन्म में आस्था रखता हूँ। उसका तात्पर्य ?
जैन तत्त्वज्ञान के अनुसार ईश्वर जैसा कोई व्यक्ति विशेष नहीं है । प्रत्येक प्राणी और मैं स्वयं भी ईश्वर की स्थिति को पहुँच सकते हैं अर्थात् मुझे मेरे चरित्र को उतना ऊँचा ले जाना चाहिये और यह विश्वास उत्पन्न करना चाहिए कि मैं क्रमशः उस पद के लिए योग्य
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