________________ [25 श्री षोडशकारण व्रत कथा ******************************** आप परम दिगम्बर मुनि हो गये। इन चारों पुत्रोंने यथायोग्य प्रजाका पालन व मनुष्योचित भोग भोगकर कोई एक कारण पाकर जिनेश्वरी दीक्षा ली, और महान तपश्चरण करके 'केवलज्ञानको प्राप्त हो, अनेक देशोंमें विहार करके धर्मोपदेश दिया। फिर शेष अघातिया कर्मोका भी नाश कर आयुके अंतमें योग निरोध करके परमपद (मोक्ष) को प्राप्त हो गये। इस प्रकार उक्त चारों कन्याओंने विधिपूर्वक इस व्रतको धारण करके स्त्रीलिंग छेदकर स्वर्ग तथा मनुष्य गतिके सुख भोगकर मोक्षपद प्राप्त किया। इसी प्रकार जो और भव्य जीव मन, वचन, कायसे इस व्रतको पालन करेंगे वे भी उत्तमोत्तम सुखोंको प्राप्त होंगे। मृगांकलेखादि कन्यायें दशलक्षण व्रत धार। 'दीप' लहो निर्वाण पद, वन्यूँ बारम्बार // 1 // (3 श्री षोडशकारण व्रत कथा) षोडशकारण भावना, जो भाई चित धार। कर तिन पदकी वन्दना, कहूं कथा सुखकार॥ जम्बूद्वीप संबंधी भरतक्षेत्रके मगध (बिहार) प्रांतमें राजगृही नगर है। वहांके राजा हेमप्रभु और रानी विजयावती थी। इस राजाके यहां महाशर्मा नामक नौकर था, और उनकी स्त्रीका : नाम प्रियवंदा था। इस प्रियवंदाके गर्भसे कालभैरवी नामक एक अत्यंत कुरूपी कन्या उत्पन्न हुई कि जिसे देखकर मातापितादि सभी स्वजनों तक को धृणा होती थीं। .