Book Title: Jain 40 Vratha katha Sangraha
Author(s): Dipchand Varni
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 160
________________ .... श्री अक्षयतृतीया व्रत कथा ... [151 ******************************** .. श्रेयांस राजाने आदि तीर्थंकरको आहार देकर दानकी उन्नति की दानको प्रारंभ किया। इस प्रकार दानकी उन्नति व महिमा समझकर भरतचक्रवर्ती, अकम्पन आदि राजपुत्र व सपरिवारसहित श्रेयांस व उनके सह राजाओंका आदरके साथ सत्कार किया। प्रसन्नचित्त हो अपने नगरको वापिस आये। . .. .. उक्त सर्व वृत्तांत (कथा) सुप्रभनामके चारण मुनिके मुखसे पृथ्वीदेवीने. एकाग्र चित्तसे श्रवण किया। वह बहुत प्रसन्न हुई। उसने / मुनिको नमस्कार किया। तथा उक्त अक्षयतीज व्रतको ग्रहण करके सर्व जन परिजन सहित अपने नगरको वापिस आये। पृथ्वीदेवीने (समयानुसार) उस व्रतकी विधि अनुसार सम्पन्न किया। पश्चात् / यथाशक्य उद्यापन किया। चारों प्रकारके दान चारों संघको बांटे। मंदिरोंमें मूर्तियां विराजमान की। चमर, छत्र आदि बहुतसे वस्त्राभूषण मंदिरजीको भेट चढाये। ... .. . ... उक्त व्रतके प्रभावसे उसने ३२.पुत्र और 32. कन्याओंका जन्म दिया। साथ ही बहुतसा वैभव और धन कंचन प्राप्त कराया आदि ऐश्वर्यसे समृद्ध होकर बहुत काल तक अपने पति सहित राज्यका भोग किया और अनंत ऐश्वर्यको प्राप्त किया। .... ____ पश्चात् वह दम्पति वैराग्य प्रवर होकर जिनदीक्षा धारण करके 'तपश्चर्या करने लगे। और तपोबलसे मोक्ष सुखको प्राप्त किया। अस्तु! .. हे भविकजनों! तुम भी इस प्रकार अक्षय तृतीया व्रतको विधिपूर्वक पालन कर यथाशक्ति उद्यापन कर अक्षय सुख प्राप्त करो। यह व्रत सब सुखोंको देने वाला है व क्रमशः मोक्ष सुखकी प्राप्ति होती है। .. ... इस व्रतकी विधि इस प्रकार है यह व्रत वैशाख सुदी तीजसे प्रारंभ होता है। और वैशाख सुदी सप्तमी तक (5 दिन पर्यंत) किया जाता है। पांचों दिन शुद्धतापूर्वक एकाशन करे या 2 उपवास या 3 एकाशन करे।

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