Book Title: Jain 40 Vratha katha Sangraha
Author(s): Dipchand Varni
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 1
________________ रनत्रय दशलक्षण / घोडशकारण जैन जगत-कथा FUL 405 भूतस्कन्ध, - मुकुटसप्तमी का श्रवणद्वाद अक्षयदशमी चन्दनषष्ठी जा सुगंर्पिदशमी पचमी/आकाशपचमा जिनरात्रि जिनगुणति KANनदावसप्तमी कोहिला निःशल्य अरमी 318 मेघमाला मान अकादशी लब्धिति अना/अाका गस्त पंचमी अक्षयतृतीया द्वादशी सर्वोतोभद्र बारहसोचौतीस रविव्रत औषधिदान णमोकार पैतीसी गुष्पाअलि कवल चन्द्रायण ज्येष्ठ जनवर मनिष्क्रीडित महासर्वतोभद्र PROM निर्जरा Hd A मुक्तावति धिसिंह नष्क्री रखनेवाली J तनदरच (दिगम्बर जैन पुस्तकालय- सूरन

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