Book Title: Jain 40 Vratha katha Sangraha
Author(s): Dipchand Varni
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 3
________________ प्रस्तावना जैन धर्ममें व्रत उपवास करनेका रिवाज व प्रभाव बहुत है क्योंकि इससे अपने जीवनमें व स्वास्थ्यसे बहुत लाभ होता है। गुजरातमें तो व्रत उपवास करनेका अधिक रिवाज है। 10-10 उपवास करनेवाले बहुत होते हैं। व्रत व पर्व अनेक हैं व उनकी कथाएं शास्त्रोमें प्रचलित हैं जो पस्तकाकार छपनेकी बडी आवश्यकता थी जिसको हमने आजसे 65 वर्ष पूर्व की थी अर्थात् मराठी, हिन्दी पद्य व्रत कथाएं संग्रह कर हमने विद्वान लेखक पं. दीपचंदजी वर्णी नरसिंहपुर नि. से 28 जैनव्रत-कथाएं प्रगट की थी जो बहुत लोकप्रिय हुई व आज तक उसकी. 15 आवृत्तियां बिक चुकी तब अबकीबार इसकी 16 आवृत्ति 40 जैन व्रत कथाएं सहित प्रगट की जाती हैं तथा साथमें 144 व्रत कथाओंकी सूची भी दे दी गई हैं। ये जैन व्रत कथाएं प्राचीन व सच्ची हैं। कोई भी व्रत करना हो तो उसकी विधि व कथा जाननेकी बहुत जरूरत होती है अतः यह व्रत कथा संग्रह ही सारे भारतमें बहुत उपयोगी हो गया है। कोई भी व्रत करें तब उसके उद्यापनके उपलक्षमें यह जैन व्रत कथा संग्रह सगे सम्बन्धी व मंदिरोंमें बाटना चाहिए जिससे व्रतोंका विशेष प्रचार हो सके। आशा है कि यह पंद्रहवी आवृत्तिका भी शीघ्र प्रचार हो जायगा। सूरत वीर सं. 2528 कारतक सुदी 15 निवेदक - स्व. मूलचंद किसनदास कापडिया शैलेश डाह्याभाई कापडिया . - प्रकाशक।

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