Book Title: Jain 40 Vratha katha Sangraha
Author(s): Dipchand Varni
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 161
________________ 152] श्री जैनव्रत-कथासंग्रह * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * : इसकी विधि यह है कि व्रतकी अवधिमें प्रातः नैत्यिक क्रियासे निवृत्त होकर मंदिरजीको जावे। मंदिरजीमें जाकर शुद्ध भावोंसे भगवानकी दर्शन स्तुति करे। पश्चात भगवानको (आदिनाथ भगवानकी प्रतिमाको) सिंहासन पर बिराजमान कर कलशाभिषेक करे। नित्य नियम पूजा भगवान आदि तीर्थंकर (आदिनाथजी) की पूजा एवं पंचकल्याणकका मण्डलजी मंडवाकर मण्डलजीको पूजा करे। तीनों काल (प्रातः मध्याह्न, सायं) निम्नलिखित मंत्रका जाप्य (माला) करें वह सामायिक करें। मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ए अर्ह आदिनाथ तीर्थंकराय गोमुख चक्रेश्वरी यक्ष यक्षी सहिताय नमः स्वाहा। प्रातः सायं-णमोकार मंत्रका शुद्धोचारण करते हुए जाप्य करे। . णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो. उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं // व्रतके समयमें गृहादि समस्त क्रियाओंसे दूर रहकर स्वाध्याय, भजन, कीर्तन आदिमें समय यापन करे रात्रिमें जागरण करे / दिनभर जिनचैत्यालयमें ही रहें। व्रत अवधिमें ब्रह्मचर्यसे रहे। हिंसादि पांचों पापोंका अणुव्रत रूपसे त्याग करे। क्रोध, मान, माया, लोभ, कषायोंको शमन करे। .. पूजनादिके पश्चात प्रतिदिन मुनिश्वरादि चार प्रकारके संघको चारों प्रकारका दान देवें, आहार करावे, फिर स्वयं पारणा करे। प्रतिदिन अक्षय तीज व्रतकी कथा सुने व सुनावे। (नोट-व्रतके समय स्त्री यदि रजस्वला हो जावे तो प्रतिदिन (एक) रस छोड़कर पारणा करे)। __इस प्रकार विधिपूर्वक व्रतको 5 वर्ष करे। व्रत पूर्ण होनेपर यथाशक्ति उद्यापन करे। भगवान आदिनाथकी प्रतिमा मंदिरजीमें भेंट करे तथा चार संघको चार प्रकारका दान देवें। इस प्रकार शुद्धतापूर्वक विधिवत् व्रत करनेसे सर्व सुखकी प्राप्ति होती है तथा साथ ही क्रमसे अक्षय सुख अर्थात् मोक्षकी प्राप्ति होती है। (समाप्त)

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