________________ श्री जिनरात्री व्रत कथा [79 ******************************** इस बातको सिवाय प्रभुके और सभाजन कोई भी न जान सके, परंतु प्रभु तो तीन ज्ञानसयुक्त थे, सो तुरंत ही उन्होंने जान लिया। आप संसारको क्षणभंगुर जानकर द्वादशानुपेक्षाओंका : चितवन करने लगे। उसी समय लोकांतिक देव आये, और प्रभुके वैराग्य भावोंकी सराहना करके उन्हें वैराग्यमें स्तुतिपूर्वक दृढ करके चले गये। __पश्चात् इन्द्रादि देवों व नरेन्द्रोंने उत्साहपूर्वक तप कल्याणकका समारोह किया। भगवान ऋषभनाथने सिद्धोंको नमस्कार करके स्वयं दीक्षा ली, और भक्तिवश उनके साथ 1000 राजाओंने भी देखादेखी दीक्षा ले ली, सो दुर्द्धर तप करनेको असमर्थ होकर नाना प्रकारके भेष धारण कर 363 पाखण्ड मत चला दिए। इन दीक्षा लेनेवालोंमें भरतजीका पुत्र मारीच भी था। सो जब केवलज्ञान हुआ और भरतजी उस समय वन्दनाको चले गये, और वन्दना करके मनुष्योंके कोठे (सभा) में बैठकर धर्मोपदेश सुनने लगे। धर्मोपदेश सुननेके अनन्तर भरतजीने पूछा-हे ऋषिनाथ! हमारे वंशमें और भी कोई आपके जैसा धर्मोपदेश प्रवर्तक अथवा चक्रवर्ती होगा? तब प्रभुने कहा___ मारीचका जीव नारायण होकर फिर तीर्थंकर भी होगा मारीच समवशरणमें ही बैठा था, सो यह बात सुनकर हर्षोन्मत्त हो दीक्षा त्याग करके वह अनेक प्रकारके पापकर्मोमें प्रवृत्त हो गया, और पंचाग्नि तपकर अन्त समय प्राण छोडकर पांचवें स्वर्गमें देव हुआ। वहांसे मिथ्यात्व अवस्थामें प्राण छोडकर अनेक त्रस स्थावर योनियोंमें जन्म मरण करनेके अनन्तर राजगृही नगरके राजा विश्वभूतिकी रानी जयंतिके विश्वनंदी नामका पुत्र हुआ। एक