________________ ******************************** श्री जिनगुणसम्पत्ति व्रत कथा [85 सो यदि अन्य भव्य जीव भाव सहित इस व्रतको पालन करे तो अवश्य ही उत्तम फलको प्राप्त होवेंगे। पालन कर जिनरात्रि व्रत, सिंह महा दुठ जीव। अनुक्रम तीर्थंकर भयो, पायो मोक्ष सदीव॥ (17) श्री जिनगुणसम्पत्ति व्रत कथा वन्दूं आदि जिनेन्द्र पद, मन वच शीश नवाय। जिनगुणसम्पत्ति व्रत कथा, कहूँ भव्य सुखदाय॥ _ घातकी खण्ड द्वीपके पूर्व मेरु संबन्धी-अपर विदेह क्षेत्रमें गांधिल देश और पाटलीपुत्र नामका नगर है। वहां नागदत्त नामका एक सेठ और उसकी सुमति नामकी सेठानी रहती थी सो निर्धन होनेके कारण अत्यन्त पीडित चित्त रहते और वनसे लकडीका भारा लाकर बेचते थे। इस प्रकार उदरपूर्ति करते थे। एक दिन वह सुमति सेठानी भूख-प्यास की वेदनासे व्याकुल होकर एक वृक्षके नीचे थककर बैठी थी कि इतने ही में क्या देखती है कि बहुतसे नरनारी अष्ट प्रकारकी पूजनकी द्रव्य लिये हुए बड़े उत्साहसे हर्ष सहित कहीं जा रहे हैं। तब सुमतिने आश्चर्यसे उन आगन्तुकोंसे पूछा-क्यों भाई! आप लोग कहां जा रहे हैं और काहेका उत्सव है? तब उत्तर मिला कि अंबरतिलक पर्वत पर पिहताश्रय नामके केवली भगवान पधारे हैं और यह अष्ट प्रकारकी द्रव्य पूजार्थ लिये जाते हैं। सुमति सेठानी यह शुभ समाचार सुनकर सहर्ष सब लोगोंके साथ ही प्रभुकी वन्दनाके निमित्त चल दी।