Book Title: Jain 40 Vratha katha Sangraha
Author(s): Dipchand Varni
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 153
________________ 144] श्री जैनव्रत-कथासंग्रह ******************************** - यह व्रत दुर्गन्धा नामकी ब्राह्मण पुत्रीने किया था जिसके प्रसादसे प्रथम स्वर्गमें वह देव हुई और वहांसे चयकर मथुरामें श्रीधर रानीके यहां पद्मरथ नामका पुत्र हुआ था और वासुपूज्यस्वामीके समवशरणमें दीक्षा लेकर उनका गणधर हुआ और कर्म नाशकर मोक्ष प्राप्त किया। (38 कर्मनिर्जरा व्रत ) यह व्रत आषाढ, श्रावण, भादों व आसोजकी चतुर्दशियोंके 4 उपवास करनेसे होता है और उसमें सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र व तपके नमस्कारपूर्वक जाप करना पड़ता है। यह व्रत सेठकी पुत्री धनश्रीने किया था, जिनके प्रभावसे वह स्वर्गके अनुपम सुखको प्राप्त हुई थी। .. (39. शिवकुमार बेला व्रत) यह व्रत 16 महिनेमें समाप्त होता है जिसमें 64 बेला और 64 पारणा होता हैं। इस व्रतकी कथा इस प्रकार है विदेह क्षेत्रके पुष्कलावती देशमें वीतशोकापुरी नामकी नगरी है। उसमें महापद्म नामके चक्रवर्ती थे। उनकी वनमाला नामकी एक रानी थी। भवदेव ब्राह्मणका जीव जो तीसरे स्वर्गमें देव हुआ था वहांसे चयकर इस रानीके गर्भमें आया और शिवकुमार नामका पुत्र हुआ। इसने यह व्रत किया जिसके प्रभावसे वह छठवें स्वर्गमें इन्द्र हुआ और वहांसे आकर मगधदेशकी राजगृही नगरीमें अर्हदास सेठकी जिनमती सेठानीके गर्भसे जम्बूस्वामी उत्पन्न हुए और लौकिक सुखोंको तिलांजलि देकर दीक्षा धार कर्म नाश कर विपुलाचल पर्वतसे मोक्ष प्राप्त किया।

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