Book Title: Jain 40 Vratha katha Sangraha
Author(s): Dipchand Varni
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 149
________________ 140] श्री जैनव्रत-कथासंग्रह ******************************** प्रकार एक मास पर्यन्त 28 एकाशन और 2 उपवास किये जाते हैं। और प्रतिदिन ऋषभनाथ भगवानकी कलशाभिषेक पूर्वक पूजन गीत नृत्य और संगीतके साथ करना चाहिए, और अत्यंत उत्साह पूर्वक शास्त्रोक्त विधिके अनुसार इस व्रतका पालन करना चाहिए। ज्येष्ठ जिनवर व्रत उत्कृष्ट 24 वर्ष और मध्यम 12 वर्ष तक व जघन्य 1 वर्ष भी किया जाता है। यह व्रत लेकर सोमश्रीने जिनेन्द्र भगवानकी पूजन कर संपूर्ण मिथ्याबुद्धिका परिहार किया तो किसी दुष्टने सोमश्रीकी साससे कहा कि तुम्हारी बहु तो चैत्यालय (जिन मंदिर) गई हैं और उस कलश द्वारा जिनेन्द्र भगवानका अभिषेक किया . गया है। यह सुनते ही सोमिल्या सास अत्यंत कुपित हुई। सोमश्री जब अपने घर आई तो सासने कडुवे वचन कहे और कहने लगी कि तू मेरे घर तभी आ सकती है जब कि मेरा घडा ले आयेगी। सासके ऐसे वचन सुनकर सोमश्री माथा धुनने लगी और वह वहां गई जहां कि कुम्हार रहता था। कुम्हारसे कहा-भाई! मेरी बात सुनो, तुम यह सोनेका कंगन (कड़ा चुरा) ले लो और 30 दिन तक एक मिट्टीका घडा प्रतिदिन देते रहो। कुम्हारने वह कंगन नहीं लिया और सोमश्रीको घडा दिया वह कहने लगा-हे पुत्री! तुझे धन्य है, तुझे धन्य है, तू व्रत (ज्येष्ठ जिनवर) पालन कर और मुझसे प्रतिदिन घडा लेती रहना। सोमश्रीने ज्येष्ठ मास तक यह व्रत किया तथा कुम्हारसे घडा लेती रही और पानी भरकर घडे सासको देती रही। ___ व्रतकी अनुमोदनापूर्वक कुम्हारकी मृत्यु हुई, और वह श्रीधर नामका राजा हुआ और विधि सहित व्रतका पालन कर सोमश्री इसी श्रीधर राजाकी पुत्री हुई जिसका नाम कुम्भश्री रखा गया

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