________________ श्री जैनव्रत-कथासंग्रह ** ******** **** **** *** ***** ****** और तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत भी ग्रहण किये। इस प्रकार सम्यक्त सहित बारह व्रत लिये। पश्चात् कहने लगा हे नाथ! मेरी दरिद्रता किस प्रकारसे मिटे तो कृपा करके कहिये। तब भगवानने उसे अनन्त चौदसका व्रत करनेको कहा। इस व्रतकी विधि इस प्रकार है कि भादों सुदी 11 का उपवास कर 12 और 13 को एकाशन करे। पश्चात् एकाशनसे मौन सहित स्वादरहित प्रासुक भोजन करे, सात प्रकार गृहस्थोंके अन्तराय पाले, पश्चात् चतुर्दशीके दिन उपवास करे। तथा चारों दिन ब्रह्मचर्य रखे, भूमि पर शयन करे व्यापार आदि गृहारंभ न करे। मोहादि रागद्वेष तथा क्रोध, मान, माया, लोभ हास्यादिक कषायोंको छोडे, सोना, चांदी या रेशम सूत आदिका अनन्त बनाकर, इसमें प्रत्येक गांठपर 14 गुणोंका चिन्तवन करके 14 गांठ लगाना। प्रथम गांठपर ऋषभनाथ भगवानसे अनन्तनाथ भगवान तक 14 तीर्थंकरोंके नाम उच्चारण करे। दूसरी गांठ पर सिद्धपरमेष्ठिके 14 गुण चिन्तवन करे। तीसरी पर 14 मुनि जो मतिश्रुत अवधिज्ञान युक्त हो गये हैं उनके नाम उच्चारण करे। चौथी पर केवली भगवानके 14 अतिशय केवलज्ञान कृत स्मरण करे। पांचवीं पर जिनवाणी में जो 14 पूर्वह उनका चिन्तवन करे। छठवीं पर चौदह गुणस्थानोका विचार करे। सातवी पर चौदह मार्गणाओंका स्वरूप विचारें।