________________ 126] श्री जैनव्रत-कथासंग्रह ******************************** और भक्ति सहित उनको पूजा वन्दना करके धर्मोपदेश सुना। ___ पश्चात् अवसर पाकर विनय सहित राजाने पूछा-हे प्रभो! हमारी रानीके पुत्र न होनेसे वे अत्यन्त दुखित रहती है, सो क्या इसके कोई पुत्र न होगा? तब मुनिराजने विचार कर कहा-राजा! चिंता न करो, इसके अत्यंत प्रभावशाली पुत्र होगा, जो चक्रवर्ती पद प्राप्त करेगा। ___ यह सुनकर राजा रानी हर्षित होकर घर आये और सुखसे रहने लगे, पश्चात् कुछ दिनोंके बाद रानीको शुभ स्वप्न हुए, और एक स्वर्गके देव रानीके गर्भमें आया। और नव मास पूर्ण होने पर रत्नशेखर नामधारी सुन्दर पुत्र हुआ। एक दिन रत्नशेखर अपने मित्रोंके साथ जब क्रीडा कर रहा था तब इसे आकाशमार्गसे जाते हुए मेघवाहन नामके विद्याधरने देखा सो देखते ही प्रेमसे विह्वल होकर नीचे आया और राजपुत्रको अपना परिचय देकर उसका मित्र बन गया। ठीक है-पुण्यसे क्या नहीं होता हैं ? ____ पश्चात् राजपुत्रने भी उसे अपना परिचय देकर मेरुपर्वतकी वंदना करनेकी इच्छा प्रगट की। तब मेघवाहन बोला-हे कुमार! हमारे विमानमें बैठकर चलो, परंतु रत्नशेखरने यह स्वीकार नहीं किया और कहा कि मुझे ही विमान रचनाकी विधि या मंत्र बताओ। सो विद्याधरने ऐसा ही किया तब विद्याधरकी सहायतासे 500 विद्यायें साधी। पश्चात् मेघवाहनादि मित्रों सहित ढाईद्वीपके समस्त जिन मंदिरोंकी वन्दनार्थ प्रस्थान किया सो विजयार्द्ध पर्वतके सिद्धकूट चैत्यालयमें पूजा स्तवन करके रंगमण्डपमें बैठा था कि इतनेमें दक्षिण श्रेणी रथनुपुर नगरकी राजकन्या