________________ श्री कोकिला पंचमी व्रत कथा ... [59 ******************************** इस प्रकार सात सागरकी आयु पूर्णकर उज्जैन नगरमें प्रियंगुसुन्दर नामक राजाके यहां तारामती नामक रानीसे सदानंद नामक पुत्र हुआ, सो कितनेक काल राज्योचित सुख भोगे।. . पश्चात् एक दिन नगर बाहर वनमें मुनिराजके दर्शन कर और उनके मुखसे संसारसे पार उतारनेवाला धर्मका उपदेश सुनकर उसने वैराग्यको प्राप्त होकर जिनदीक्षा अंगीकार की, और शुक्लध्यानके बलसे केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्षपद प्राप्त किया। __ इस प्रकार विशाला नामकी वणिक कन्याने व्रतके प्रभावसे स्वर्ग और मोक्ष पद प्राप्त किया, तो यदि श्रद्धा सहित अन्य जीव यह व्रत पालेंगे तो क्यों न उत्तम सुखोंको प्राप्त होवेंगे? अवश्य होंगे। सूता विशाला वणिक व्रत, आकाश पंचमी सार। स्वर्ग मोक्ष सम्पति लही, 'दीप' नमावत भाल॥ (1 श्री कोकिला पंचमी व्रत कथा ॐकार वाणी नमू, स्याद्वाद मय सार। जा प्रसाद सन्मति मिले, कथा कहूँ सुखकार॥ कुरुजांगल देशमें गंगा नदीके किनारे राजनगर है, वहांका राजा वीरसेन न्यायपरायण और धर्मात्मा था। इसी नगरमें दो वणिक श्रेष्ठि रहते थे-एकका नाम धनपाल और दूसरेका नाम जिनभक्त था। धनपाल सेठके धनमती नामकी सेठानीसे धनभद्र नामका पुत्र उत्पन्न हुआ और जिनभक्त सेठके घर जिनमती नामकी कन्या