________________ . श्री निर्दोष सप्तमी व्रत कथा [69 * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * ___ भादो सुदी 7 को आवश्यक वस्त्रादि परिग्रह रख शेष समस्त आरम्भ व परिग्रहका त्याग करके श्री जिनमंदिरमें जावे और प्रभुका अभिषेक आरम्भ करे। अर्थात् वहां पर दूधका कुण्ड भरके उसमें प्रतिमा स्थापन करे, और पंचामृतका स्नान करानेके पश्चात् अष्टद्रव्यसे भाव सहित पूजन करे और स्वाध्याय करे। इस प्रकार धर्मध्यानमें बितावे। पश्चात् दूसरे दिन हर्षोत्सव . सहित जिनदेवका पूजन अर्चन करके अतिथिको भोजन कराकर और दीन दु:खियोंको यथावश्यक दान देकर आप भोजन करे। इस प्रकार सात वर्ष तक यह व्रत करके पश्चात् विधिपूर्वक उद्यापन करे और यदि उद्यापनकी शक्ति न हो, तो दूने वर्षो तक व्रत करे। उद्यापन इस प्रकार करे-बारह प्रकारका पकवान और बारह प्रकारके फल तथा मेवा श्रावकोंको बांटे। बारह बारह कलश, झारी, झालर, चन्दोवा आदि समस्त उपकरण जिन मंदिरमें चढावे। बारह शास्त्र लिखाकर पधरावे और चतुर्विध दान करे। ___ राजाने यह सब व्रत विधान सुनकर स्वशक्ति अनुसार श्रद्धा सहित इस व्रतको पालन किया और अन्तमें आयु पूर्ण कर (समाधिमरण कर) सातवे स्वर्गमें देव हुआ। और भी जो भव्य जीव श्रद्धा सहित इस व्रतको पालेंगे तो वे भी उत्तमोत्तम सुखोंको प्राप्त होंगे। व्रत सातम निर्दोष कर लहो स्वर्ग सुखदान॥