________________ 74] ******* श्री जैनव्रत-कथासंग्रह ******** ****** ********* ** (15) श्री सुगन्ध दशमी व्रत कथा ) वीतरागके पद प्रणमि, प्रणमि जिनेश्वर वान। कथा सुगन्ध दशमी तनी, कहूं परम सुखदान॥ जम्बूद्वीपके विजयार्द्ध पर्वतकी उत्तरश्रेणीमें शिव मंदिर नामका एक नगर है। वहांका राजा प्रियंकर और रानी मनोरमा थी, सो वे अपने धन यौवन आदिके एश्वर्यमें मदोन्मत्त हुए जीवनके दिन पूरे करते थे। धर्म किसे कहते हैं, वह उन्हें मालूम भी न था। ___ एक समय सुगुप्त नामके मुनिराज कृश शरीर दिगम्बर मुद्रायुक्त आहारके निमित्त बस्तीमें आये उन्हें देखकर रानीने अत्यंत घृणापूर्वक उनकी निन्दा की और पानकी पिच मुनिपर यूंक दी। सो मुनि तो अन्तराय होनेके कारण बिना ही आहार लिये पीछे वनमें चले गये और कर्मोकी विचित्रता पर विचार कर समभाव धारण कर ध्यानमें निमग्न हो गये। परंतु थोडे दिन पश्चात् रानी मरकर गधी हुई फिर सूकरी हुई, फिर कूकरी हुई, फिर वहांसे मरकर मगध देशके वसंततिलक नगरमें विजयसेन राजाकी रानी चित्रलेखाकी दुर्गन्धा नामकी कन्या हुई। सो इसके शरीरसे अत्यन्त दुर्गन्ध निकला करती थी। एक समय राजा अपनी सभामें बैठा था कि धनपालने आकर समाचार दिया कि हे राजन! आपके नगरके वनमें सागरसेन नामके मुनिराज चतुर्विध संघ सहित पधारे हैं। __यह समाचार सुनकर राजा प्रजा सहित वन्दनाको गया और भक्तिपूर्वक नतमस्तक हो राजाने स्तुति वन्दना की। पश्चात्