________________ [65 - श्री चन्दनषष्ठी व्रत कथा ******************************** पूजन करो, अर्थात् छ: प्रकारके उत्तम और प्रासुक फलों सहित अष्टद्रव्यसे छ: अष्टक चढावो, अर्थात् छ: पूजा करो। एकसौ आठ 108 बार णमोकार मंत्रका फलो व फूलों द्वारा जाप करो, चारो संघको चार प्रकारका दान देवो। इस प्रकार व्रत करो। तीनों काल सामायिक, व्रत, अभिषेक, पूजन करो, घरके आरंभ व विषयकषायोंका उपवासके दिन और रात्रिभर आठ प्रहर तथा धारणा पारणाके दिन 4 प्रहर ऐसे सोलह प्रहरों तक त्याग करो। इस प्रकार छ: वर्ष तक यह व्रत करो। पश्चात् उद्यापन करो अर्थात् जहां जिनमंदिर न हो वहां छ: जिनालय बनवाओ, छ: जिनबिंब पधरावो, छ: जिनमंदिरोंका जीर्णोद्धार करायो, छ: शास्त्रोंका प्रकाशन करो। छ: छ: सब प्रकारके उपकरण मंदिरमें चढाओ, छात्रोंको भोजन करावो। चार प्रकारके (आहार, औषध, शास्त्र और अभयदान) दान देवो। इस प्रकार दंपतिने व्रत की विधि सुनकर मुनिराजकी साक्षीपूर्वक व्रत ग्रहण करके विधि सहित पालन किया। कुछ दिनमें अशुभ कर्मकी निर्जरा होनेसे उनका शरीर बिलकुल निरोग हो गया, और आयुके अन्तरमें सन्यास मरण करके वे दम्पति स्वर्गमें रत्नचूल और रत्नमाला नामक देव देवी हुए सो बहुत काल तक सुख भोगते और नन्दीश्वर आदि अकृत्रिम चैत्यालयोंको पूजा वन्दना करते कालक्षेप करते रहें। ____ अन्तमें आयु पूर्णकर वहाँसे चयकर तुम राजा हुए हो और वह रत्नमालादेवी तुम्हारी पट्टरानी पद्मिनी हुई हैं। सो यह तुम दोनोंका पूर्वभवोंका सम्बन्ध होनेसे ही प्रेम विशेष हुआ है। यह वार्ता सुनकर राजाको भवभोगोंसे वैराग्य उत्पन्न हुआ सो उन्होंने अपने ज्येष्ठ पुत्रको राज्य देकर आपने दीक्षा ले