________________ 50] श्री जैनव्रत-कथासंग्रह ******************************** इसलिये यह पुत्री सम्यक्तपूर्वक श्रावण शुक्ला द्वादशी व्रतको धारण करे तो इस कष्टसे छूट सकती है। इस व्रतकी विधि निम्न प्रकार है-श्रावण सुदी एकादशीको प्रात:काल स्नानादि करके श्री जिन पूजा करे और पश्चात् भोजन करके सामायिकके समय द्वादशी व्रतके उपवासकी धारणा (नियम) करे। इसी समयसे अपना काल धर्मध्यानमें बितायें और द्वादशी को भी नियमानुसार उठकर नित्य क्रियासे निवृत्त हो श्री जिनमंदिरमें जाकर उत्साह सहित पंचामृत अभिषेक कर अष्टद्रव्यसे पूजन करे अर्थात् पाठ और मंत्रोंको स्पष्ट बोलकर प्रासुक अष्टद्रव्य चढावे और णमोकार मंत्र (35 अक्षर) का पुष्पों द्वारा 108 बार जाप करे। सामायिक स्वाध्यायादि धर्मध्यानमें काल बितावे। पश्चात् किसी अतिथि या दीन दु:खीको भोजन दान करनेके बाद भोजन करे। इस प्रकार एक वर्षमें एक बार करे। सो बारह वर्ष तक करे। पश्चात् उत्साह सहित उद्यापन करे। अर्थात् चारमुखी प्रतिमाकी प्रतिष्ठा करावे। अथवा जहां मंदिर हो वहां चार महान् ग्रंथ लिखाकर जिनालयमें पधरावे वेष्टन, चौकी, छत्र चमरादि उपकरण चढावे, परोपकारमें द्रव्य खर्च करे। व्यापार रहितोंको व्यापारार्थ पूंजी लगा देवे / पठनाभिलाषियोंको छात्रवृत्ति देकर पढनेको भेजे, रोगीको औषधि, निःसहाय दीनोंको अन्न वस्त्र औषधादि देवे, भयभीत जीवोंको भयरहित करे, मरतेको बचावे इत्यादि। और यदि उद्यापन की शक्ति न हो तो दूना व्रत करे। इस व्रतके फलसे यह तेरी कन्या यहांसे मरण करके तेरे ही घर अर्ककेतु नामका पुत्र होगा और उनके छोटा चन्द्रकेतु होगा सो चन्द्रकेतु युद्धमें मरकर पीछे अर्ककेतुका पुत्र होगा पश्चात् अर्ककेतु कितने काल राज्य करके अंतमें