________________ 54] श्री जैनव्रत-कथासंग्रह ******************************** और भूख प्यासकी वेदनासे उसका चित्त विह्वल रहने लगा। इस प्रकार वह रौद्र भावोंसे मरकर नर्कमें गई। वहांपर भी मारन, ताड़न, छेदन, भेदन, शूलीरोहणादि घोरान्घोर दुःख भोगे। वहांसे निकलकर गायके पेटमें अवतार लिया और अब यह तेरे घर दुर्गन्धा कन्या हुई है। ' __यह पूर्व वृत्तांत सुनकर धनमित्रने पूछा-हे नाथ! कोई व्रत विधानादि धर्म कार्य बताइये जिससे यह पातक दूर होवे, तब स्वामीने कहा-सम्यग्दर्शन सहित रोहिणीवत पालन करो, अर्थात् प्रति मासमें रोहिणी नामका नक्षत्र जिस दिन होवे, उस दिन चारो प्रकारके आहारका त्याग करे और श्री जिन चैत्यालयमें जाकर धर्मध्यान सहित सोलह पहर व्यतीत करे अर्थात् सामायिक, स्वाध्याय, धर्मचर्चा, पूजा, अभिषेकादिमें काल बितावे और स्वशक्ति अनुसार दान करे। इस प्रकार यह व्रत 5 वर्ष और 5 मास तक करे। पश्चात् उद्यापन करे। अर्थात् छत्र, चमर, ध्वजा, पाटला आदि उपकरण मंदिरमें चढावे, साधुजनों व साधर्मी तथा विद्यार्थियोंको शास्त्र देवे, वेष्टन देवे, चारो प्रकारके दान देवे और जो द्रव्य खर्च करनेकी शक्ति न हो तो दूना व्रत करे। दुर्गन्धाने मुनिश्रीके मुखसे व्रतकी विधि सुनकर श्रद्धापूर्वक उसे धारण कर पालन किया, और आयुके अन्तमें सन्यास सहित मरण कर प्रथम स्वर्गमें देवी हुई वहांसे आकर मधवा राजाकी पुत्री और तेरी परमप्रिया स्त्री हुई है। इस प्रकार रानीके भवांतर सुनकर राजाने अपने भवांतर पूछे___ तब स्वामीने कहा-तू प्रथम भवमें भील था। तूने मुनिराजको घोर उपसर्ग किया था। सो तू वहांसे मरकर पापके फलसे