________________ श्री अक्षय (फल) दशमी व्रत कथा [47 ******************************** विचार कर कहा- हे राजा! पूर्व जन्ममें इस तुम्हारी रानीने मुनिदानमें अन्तराय किया था, इसी कारण से तुम्हारे पुत्रकी अन्तराय हो रही हैं। तब राजाने कहा-प्रभु! कृपया कोई यत्न बताईये, कि जिससे इस पापकर्मका अन्त आवे। यह सुनकर श्री मुनिराज बोले-वत्स! तुम अक्षय (फल) दशमी व्रत करो। श्रावण सुदी 10 को प्रोषध करके श्री जिनमंदिर में जाकर भाव सहित पूजन विधान करो, पंचामृताभिषेक करो और 'ॐ नमो ऋषभाय' इस मंत्रका जाप्य करो। यह व्रत दश वर्ष तक करके उद्यापन करों, दश दश उपकरण श्री मंदिरजीमें भेट करो, दश शास्त्र लिखाकर साधर्मियोंको भेंट करो, और भी दीनदुःखी जीवों पर दया दान करो, विद्यादान देवो, अनाथोंकी रक्षा करो जिससे शीघ्र ही पापका नाश हो सातिशय पुण्य लाभ हो इत्यादि विधि सुनकर राजा राणी आए और विधिपूर्वक व्रत पालन करके उद्यापन किया। सो इस व्रतके महात्म्य तथा पूर्व पापके क्षय होनेसे राजाको सात पुत्र और पांच कन्याएं हुई। इस प्रकार कितनेक कालतक राजा दया धर्मको पालन करते हुए मनुष्योचित सुख भोगते रहे। पश्चात् समाधिमरण करके पहिले स्वर्गमें देव हुए और वहांसे चयकर मनुष्य भव लेकर मोक्षपद प्राप्त किया। इस प्रकार और भव्य जीव यदि श्रद्धा सहित यह व्रत पालेंगे तो उन्हें भी उत्तमोत्तम सुखोंकी प्राप्ति होवेगी। अक्षय दशमी व्रत थकी, मेघनाद नृप सार। 'दीप' रहीं पंचम गती नमूं त्रिलोक सम्हार॥