Book Title: Indudutam
Author(s): Dhurandharvijay
Publisher: Jain Sahityavardhak Sabh

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Page 7
________________ शास्त्रविशारद-कविरत्न--पीयूषपाणि-पूज्याचार्य__ श्रीविजयामृतसूरीश्वरमहाराजानां स्तुतिपञ्चकम्. (शिखरिणी-छन्दोबद्धम् ). जनानां सौभाग्या-अनिरजनि यस्यात्र सुभगा / सुराष्ट्रे सौराष्ट्रे शुचिरुचिरबोटादनगरे // कुलीनेऽहल्लीने सुकृतिकृतिपीने परिजने / स्तुवे तं सद्भक्त्या वरममृतसूरि गुरुवरम् // 1 // . विरक्तिः संसारा-च्छिशुसमयतो भक्तिरतुला / जिने दीनेऽकम्पा सततमनुकम्पा शुभफला // सदा ज्ञाने ध्याने रुचिरविचला यस्य विमला स्तुवे तं सद्भक्त्या वरममृतसूरि गुरुवरम् // 2 // जिघृक्षा दीक्षायाः समजनि मुमुक्षाप्रबलतः / स्वभावात् सद्भावा-चरणकरणं साधु चरितम् / / गुरुप्रेम्णा प्राप्तं पदमनुपमं येन विदितं स्तुवे तं सद्भक्त्या वरममृतसूरि गुरुवरम् // 3 // यदीयं व्याख्यानं व्रतचरणसम्मानजननं / यदीयं सौभाग्यं सुजनजनदौर्भाग्यहननम् // यदीयं माहात्म्यं प्रशमरसतादात्म्यकरणं....स्तुवे० // 4 // उपाध्याधिव्याधि-प्रभवभवदुःखानि सपदि / क्षयं शीघ्रं यान्ति क्रमकमलयोर्यस्य नमनात् // सुखानामास्थानं भवति झटिति प्राणिनिवहः...स्तुवे० // 5 // _( भुजङ्गप्रयातम् ) इदं पश्चकं पश्चमज्ञानदायि, प्रगे पाठमात्रेण संसारतायि // गुरूणां प्रभावाद् गुरोर्भक्तिभावात् कृतं श्रेयसे सज्जनानां मुदे स्तान

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