Book Title: Indian Antiquary Vol 15
Author(s): John Faithfull Fleet, Richard Carnac Temple
Publisher: Swati Publications

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Page 13
________________ JANUARY, 1886.] JAYACHCHANDRA OF KANAUJ. A.-ROYAL ASIATIC SOCIETY PLATE OF VIJAYACHANDRA AND THE YUVARAJA JAYACHCHANDRA. -SAMVAT 1225, This inscription is from a copper-plate which is now in the Library of the Royal Asiatic Society in London. No information is forthcoming as to where it was originally found. The plate, which is inscribed on one side only, measures about 1' 6" by 1'1'. It is quite smooth, the edges being neither fashioned thicker nor raised into rims. The inscription has suffered a good deal from corrosion; but the following inscription B. renders it easy to supply most of the damaged letters. There is a ring-hole in the top of the plate; but the ring and seal are not forthcoming. The weight of the plate is 9 lbs. 87 oz. TEXT. [1] स्वस्ति [1] अकुंडोत्कंठवैकुंठकंपीउलुउत्करः। संरंभः सुरतारं स श्रि[य]: श्रेयसेस्तु वः।। [१] भा. सीदशीतद्युतिवंशजातक्ष्मापालमालासु दिवं ग[P] तास [1] साक्षाद्विवस्वानिव भूरिधाना ना(मा) यशोविग्रह इत्युशरः ।। [२] तत्सुतोभून्महीचंद्रचंद्रधाम निभं निजं । येनापारमकूपारपारे व्यापारितं यशः [1] [३] [२] तस्याभूत्तनयो नयैकरशिक:' क्रान्तद्विषन्मंडलो विध्वस्तोद्धत(in marg. वीर)योधतिमिरः श्रीचंद्रदेवो नृपः। येनोवारतरप्रतापशमि(ता)शेषप्रजोपद्रवं श्रीमझा[*] धिपुराधिराज्य)मसमं दोबिक्रमेणाजितं ।। [५] तीर्थानि काशिशिकोत्तरकौशलेन्द्रस्थानीयकानि परि पालवताधिगम्य [0] हेमात्मतुल्यमनिशं ददता [*] बिजेभ्यो ये(नां)किता वसुमती (श)तशस्तुलाभिः ॥[५] तस्यास्मशो मदनपाल इति क्षितीन्द्रचूडामणिविजयते निजगोवचंद्र।। यस्याभिषे)कक[*] लसोल्लसितैः पयोभिः प्रक्षालितं कलिरजःपटल धरित्र्याः॥ [1] तस्मादजायत निजायतवाहवल्लिवधा'वरुद्धनव राज्यगजो नरेंद्रः [1] सांद्रामृतद्रवमुचां ['] प्रभवो गवां यो गोविंदचंद्र इति चंद्र इवांबुरासेः' ।। [७] न कथमप्यलभ(न्त) रणक्षमांस्तिषु विक्षु गजानथ वजिणः। ककुभि (व)भ्रमुर(भ)मुवनप्रतिभटा ["] व यस्य पटागजाः ।। [4] अजनि विजयचंद्रो नाम तस्मानरेंद्रः "सरपतिरिव भूभृत्पक्षविच्छेववक्षः। भुव. नदलनहेलाहर्म्यहम्मीरनारीनय[*] नजलधाराधीतभूलोकतापः ।। [९] यस्मिंश्चलत्युदधिनेमिमहीजयाय मायकरीन्द्रगुरुभारनिपीडितेव। बाति प्रजापतिपदं शरणार्थिनी ["] भूस्वंगनुरंगनिवहोत्थरजइछलेन । [१०] सोयं समस्तराजच(क)संसेवितचरणः स च परमभहारकमहाराजाधि राजपरमंन्वरपरममाहेश्वर[1] निजभुजोपार्जितकन्यकुब्जा"धिपत्यश्रीचंद्रदेवपादानुध्यातपरमभहारकमहाराजाधिराजपरमेश्वरपरममाहेश्वरश्रीम वनपालदेव["] पादानुध्वातपरमभहारकमहाराधिराज परमेश्वर(प)रममाहेश्वराश्वपतिगजपतिनरपतिराजवयाधिपतिविविधविचा विचारवाचस्प["] तिश्रीगोविन्दचंद्रदेवपादानुध्यातपरमभहारकमहाराजाधिराजपरमेश्वरपरममाहेश्वराश्वपतिगजपतिनरपतिराजववा धिपतिविविध ["] विचविचार"(वा)चस्पतिश्रीमद्विजयचंद्रदेवो विजयी।" देव(होलीपत्तलायां ना(ग)लीपाम"निवासिनो निषि ल"जनपदानुपगतानपि च राजराज्ञी युव["] राजमांबपुरोहितप्रतीहारसेनापतिभाण्डागारिकारि(का)"पटलिकभिषक्नैमित्ति"कान्त पुरिकबूतकरितुरगप तनाकरस्थानगोकुलाधि["] कारिपुरुषानाज्ञापयति बोधयत्यादिशति च यथा। विदितमस्तु भवतां यथोपरिलिखितमामःसजल(स्थ)लः" सलाहलवणाकर[] सगभेषरः • Indian Inscriptions, No. 12. - Read नयैकरसिक. • Read 'बाहुवनिबंधा. • Read इवांबुराशेः. 0 Rend बभ्रमु. ॥ This aign in ruperfluous, " Read 'कन्यकुब्जा . " Read °महाराजाधिराज'. " Read "विपाविचार'. " Thinsign is superfinous. "Or नामलीग्राम (2) 1 Road निखिल. " Rend °भाण्डागारिकाक्षी. " Rend भिषनैमित्ति. - Rond बोधय. 3This sign is superfluous.

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