Book Title: He Prabho Terapanth
Author(s): Sohanraj Kothari
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 6
________________ भूमिका तेरापंथ एक गौरवशाली धर्मसंघ है, जैन धर्म में आये शैथिल्य के विरुद्ध विचार और आचार की उत्क्रांति के रूप में वि० सं० १८१७ में इसका उद्भव हुआ, तब से आज तक इसमें उत्तरोत्तर निखार आता रहा है, उत्क्रांति के पुरोधा प्रथम आचार्य स्वामी भीखणजी से लेकर वर्तमान आचार्यश्री तुलसी तक ने इसकी महत्ता को न केवल अक्षुण्ण बनाये रखा है, अपितु उसे विकसित और वृद्धिगत किया है। तेरापंथ के इतिहास का अनुशीलन करने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपने आचार्यों के उन महनीय कार्यकलापों को जानता है तथा उनके प्रति एक अनिर्वचनीय गौरवानुभूति रखता है। प्रारम्भ काल से ही तेरापंथ का अपने इतिहास के प्रति बड़ा जागरूक एवं सुलझा हुआ दृष्टिकोण रहा है । उसने इतिहास का निर्माण करने में जितना महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है, उतना ही उसके संरक्षण और लेखन में भी, इसीलिए अपने प्रारम्भ काल से लेकर आज तक का तेरापंथ का इतिहास अविकल रूप से उपलब्ध है, इतिहास लेखन के कार्य में यहां आचार्यों से लेकर साधुओं एवं श्रावकों तक की एक लम्बी श्रृंखला रही है, जो अपने जागरूक कर्तव्य के माध्यम से आगे से आगे की कड़ी जोड़ती चली आयी है। तेरापंथ के नवम् अधिशास्ता अमृतपुरुष आचार्यश्री तुलसी अपने शासनकाल के पचासवें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, इस संप्रेरक अवसर पर समग्र समाज में एक नवोल्लास एवं नवोत्साह की लहर है, अनेक परियोजनाएं इसी उपलक्ष्य में कार्यरूप में परिणत की जा रही हैं। तेरापंथ प्रवक्ता, पूर्व न्यायाधीश श्री सोहनराज कोठारी भी ऐसे अवसर रो संप्रेरित होकर संघीय इतिहास के लेखन-कार्य में एक नयी कड़ी जोड़ रहे हैं। वे तेरापंथ इतिहास के मर्मज्ञ हैं, समय-समय पर इस विषय में उन्होंने काफी लिखा भी है। प्राचीनता के जखीरे में से कुछ नवीन खोज निकालने की उनकी मनोवृत्ति इतिहास कार्य के लिए बहुत उपयोगी कही जा सकती है। 'हे प्रभो ! तेरापंथ' नामक प्रस्तुत पुस्तक में कोठारीजी ने तेरापंथ के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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