Book Title: Gommatsara Jivakand Author(s): Khubchandra Jain Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ... रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । और भी-'अजज्जसेणगुणगणसमूहसंधारि अजियसेणगुरु । भुवणगुरु जस्स गुरु सो राओ गोम्मटो जयउ ॥” अर्थात् वह श्री चामुण्डराय जयवंत्ता रहो कि जिसके गुरु अजितसेन नाथमें ऋद्धिप्राप्त गणधर देवादिकोंके गुण पाये जाते हैं ॥ आचार्य श्री आर्यसेनके अनेक गुणोंके समूहको धारण करनेवाले तथा तीन लोकके गुरु अजितसेन गुरु जिसके गुरु हैं वह गोम्मट राजा जयवंता रहो ॥ इससे यह बात मालुम होती है कि जिन अजितसेन स्वामीका उल्लेख बाहुबली चरितमें और गोमटसारमें किया गया है वे एक ही हैं। परंतु ये अजितसेन कब हुए इस बातका कुछ पता श्रवणवेलगोलाके एक शिलालेखसे मिलता है। उसमें अजितसेनके विषयमें लिखा है कि: गुणाः कुंदस्पन्दोड्डुमरसमरा वागमृतवाः, प्लवप्रायः प्रेयःप्रसरसरसा कीर्तिरिव सा । नखेन्दुर्थोत्स्ना पचयचकोरप्रणयिनी, न कासां श्लाघानां पदमजितसेनो व्रतिपतिः ।। यह शिलालेख करीव ग्यारहमी शदीका खुदा हुआ है । इससे मालुम होता है कि श्री अजितसेन खामी ग्यारहमी शदीके पूर्व हुए हैं, और उसी समय श्री चामुण्डराय भी हुए हैं । परंतु पं. नाथूरामजी प्रेमी द्वारा लिखित 'चंद्रप्रभचरितकी भूमिका में श्री चामुण्डरायके परिचयमें लिखा है कि कनड़ी भाषाके प्रसिद्ध कवि रन्नने शक सम्वत् ९१५ में 'पुराणतिलक' नामक ग्रंथकी रचना की है और उसने आपको रक्कस गंगराजका आश्रित बतलाया है। चामुण्डरायकी भी अपनेपर विशेष कृपा रहनेका वह जिकर करता है।' इससे मालुम होता है कि शक सं. ९१५ या विक्रम सं. १०५० के लगभग ही श्री चामुण्डराय और श्री अजितसेन खामी हुए हैं। गोमसारकी श्री चामुण्डरायकृत एक कर्नाटक वृत्ति श्रीनेमिचंद्र सि. चक्रवर्तीके समक्ष ही वन चुकी थी। उसीके अनुसार श्री केशववर्णीकृत संस्कृत टीका भी है उसकी आदिमें लिखा हुआ है कि:__ 'श्रीमदप्रतिहतप्रभावस्याद्वादशासनगुहाभ्यंतरनिवासिप्रवादिसिंधुरसिंहायमान-सिंहनंदिनन्दितगंगवंशललाम-राजसर्वज्ञाद्यनेकगुणनामधेयभागधेय-श्रीमद्राजमल्लदेवमही वल्लभमहामात्यपदविराजमान-रणरङ्गमल्लासहायपराक्रम-गुणरत्नभूषण-सम्यक्त्वरत्ननिलयादिविविधगुणनामसमासादितकीर्तिकांत-श्रीमच्चामुंडरायप्रश्नावतीर्णैकचत्वारिंशत्पदनामसत्वप्ररूपणद्वारेणाशेषविनेयजननिकुरंवसंबोधनार्थ श्रीमन्नेमिचंद्र सैद्धान्तिकचक्रवर्ती समस्तसैद्धान्तिकजनप्रख्यातविशदयशाः विशालमतिरसौ भगवान् ... ... गोमट्टसारपंचसंग्रहप्रपंचमारचयँस्तदादौ निर्विघ्नतः शास्त्रपरिसमाप्तिनिमित्तं ... ... देवताविशेषं नमस्करोति । राचमल्ल और रक्कस गंगराज ये दोनों ही भाई थे। उपर्युक्त गोमट्टसारकी पंक्तियोंसे स्पष्ट है कि राच. मल्ल चामुण्डराय तथा श्री नेमिचंद्रसिद्धांतचक्रवर्ती तीनोंही समकालीन हैं। राचमल्लका समय विक्रमकी ग्यारहमी शदी निश्चित की जाती, है अत एव यह स्वयं सिद्ध है कि यही समय चामुण्डराय तथा श्री नेमिचंद्र सिद्धांतचक्रवर्तीका भी होना चाहिये । For Private And PersonalPage Navigation
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