Book Title: Gommatsara Jivakand
Author(s): Khubchandra Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ओं नमः प्रस्तावना । इस ग्रंथके रचयिता श्री नेमिचंद्र सिद्धांतचक्रवर्ती हैं। आपके पवित्र जन्मसे यह भारत भूमि किस समय अलंकृत हुई यह ठीक २ नहीं कहा जासकता; तथापि इतिहासान्वेषी विक्रमकी ग्यारहमी शताब्दीके प्रारम्भमें या उसके कुछ पूर्व ही बहुधा आपने अपने भवभंजक उपदेशसे भव्योंको कृतार्थ किया था यह सिद्ध करते हैं। इस सिद्धिमें जो प्रमाण दिये जाते हैं उनमेंसे कुछ का हम यहांपर संक्षेपमें उल्लेख करते हैं । बृहद्रव्यसंग्रहकी भूमिकामें पं. जवाहरलालजी शास्त्रीने आपका शक संवत् ६०० ( वि. सं. ७३५) निश्चित किया है। क्योंकि श्रीनेमिचंद्र स्वामी तथा श्रीचामुण्डराय दोनोंही समकालीन थे। और श्री चामुण्डरायके बिषयमें 'बाहुबलिचरित' में लिखा है कि: 'कल्क्यब्दे षट्शताख्ये विनुतविभवसंवत्सरे मासि चैत्रे पंचम्यां शुक्लपक्षे दिनमणिदिवसे कुम्भलग्ने सुयोगे । सौभाग्ये मस्तनाम्नि प्रकटितभगणे सुप्रशस्तां चकार श्रीमच्चामुण्डराजो वेल्गुलनगरे गोमटेशप्रतिष्ठाम् ॥ ५५ ॥ अर्थात् शक सं. ६०० में चैत्र शुक्ला ५ रविवारके दिन श्रीचामुण्डरायने श्रीगोमटखामीकी प्रतिष्ठा की। परंतु यदि दूसरे प्रमाणोंसे इस कथन की तुलना की जाय तो इसमें बाधा आकर उपस्थित होती है । क्योंकि बाहुबलिचरितमें ही यह बात लिखी हुई है कि 'देशीयगणके प्रधानभूत श्री अजितसेन मुनिको नमस्कार करके श्रीचामुण्डराय ने श्रीबाहुबलीकी प्रतिमाके विषयमै वृत्तान्त कहा,' यथाः 'पश्चात्सोजितसेनपण्डितमुनि देशीगणाग्रेसरम् स्वस्याधिप्यसुखाब्धिवर्धनशशिश्रीनन्दिसंघाधिपम् । श्रीमद्भासुरसिंहनंदिमुनिपाङ्याम्भोजरोलम्बकम् चानम्य प्रवदत्सुपौदनपुरीश्रीदोर्बलेवृत्तकम् ॥" श्रीमन्नेमिचंद्र सिद्धांतचक्रवर्तीने भी गोमटसारमें श्री अजितसेनका स्मरणं किया है । और उनको श्री. चामुण्डरायका गुरु बतलाया है । यथाः 'जिम्हिगुणा विस्संता गणहरदेवादि इडिपत्ताणं । सो अजियसेणणाहो जस्स गुरु जयउ सो राओ ॥" १ यहांपर कल्की शब्दसे जो शकका ग्रहण पं. जवाहरलालजी शास्त्रीने किया है वह किस तरह किया यह हमारी समझमें नहीं आया। मा.श्री केलामभागर मृरि ज्ञान मंदिर For Private And Personal

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