Book Title: Dwadash Koshanam Sangraha
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - -- - धनंजयकोश 10 वियोगस्पसमा स्नेहस्य बना वियागमदनावस्थाविरहपल्लविदुः॥प्रेमाभिलाषमालम्बरा। गरिनेहमतःपरमानासहित सहितंयुक्तं संपृक्तसंभृतंयुत संस्कृतंसमवेतच प्राहरन्वीतमन्वितम्शायावास रणि पन्थामार्गप्रवरसञ्चऎत्रिमार्गकानामगाँघोषागा मण्डलंबजेःशकतीनदीमोनिमात कुशलोनिपुण:पद्धः / प्रोहिणः पक्षण प्रवीण:प्रागल्भकोविदेश्वविशारदः॥६॥विदग्धश्चत रौधूर्तश्चाटुककितवःशठकापिनागरिकोजेयोगात्रसेज कनामतता६४ामुग्धौमूढोजडोनेडोमूकोमूचनकदः॥ संदेवानांत्रियाँप्राज्ञोमन्दोधीनामवर्जितः॥६॥षाष्टिकक॥ लम शालिग्राहि तेवकारस्तथाविम शरुत्करिति षोड: दशेनस्मृतः॥६६॥शौएंडोरीगर्वितःस्तब्धोमानीचाहद इतः॥उद्दीउद्रोहप्तौनीचश्चपिशुनौधमः॥६७ चौरेका गारिकस्तेनतस्कर प्रतिरोधका निशाचरोगूढचरोहरिकत्र गिधीपाई॥प्रस्तरोपलपीपादृषधातशिलापना। ताजातर्मयोलोहेशातकं नयेत्परमाइलासाधीयौत्यर्थम स्पतनितांतसुष्टवैशमा तटसाधुखलुस्पष्टविशद कलाः मलम गचित्राचाडतंचोविस्मय कौतको प्यहाँ। अभियोगौद्यमाद्योगाउत्साहौविक्रमामतः विनासा मशान्ते / / रुशंसाणेदीनंजीर्ण पुरातनम्॥शीर्णावसानेन्यूनचधेयर जोयेचपी रुषम्। शरिहा रहसोपानरहस्यवाभिनत्तिके कीनाशपणोलुब्योमुग्धोदीनोमिलापकः क्षित्री | श्वमवरंशीप्रेसहसाझटितिद्रुतमातूजव स्यूदोरहौरयो वेगस्तरोलपु७४ापोशनीतःसितोक्स्सन्धानीतोनियंत्रि|| तानियामित शृङखलितोनिबद्धःपाशितौरिः। शकिरा! न्तंचकमनककमनीयमनोहरमाअभिरामरमणीपरम्प लिम्पच संदर।७४ाचारुश्लरणंचरुचिरप्रशस्तंहृद्यवसरमा PLA manaww - --- --- - - - a nmaamanawwamreya - -- - -- - - - For Private and Personal Use Only

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