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दि. जैन व्रतोद्यापन संग्रह ।
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गुणज्ञो गुणवान् साधुः प्रत्याख्यानपरायणः ।। तोयचन्दनपुष्पोधः मह्यते मोक्षदायकः ।।
ॐ ह्रीं प्रत्याख्यानावश्यका० जलादिकं ॥५॥ कायोत्सर्ग करोत्येव निर्भयः सर्वतो यथा । तोय चन्दन
ॐ ह्रीं कायोत्सर्गावश्यका० जलादिकं ॥६॥ तोयचन्दनपुष्पौधैः प्रसूनेश्वाक्षतैः शुभैः । हव्यदीपैश्चधूपैश्च तां यजे वरश्रीफलैः ।। ॐ ह्रीं आवश्यकापरिहाणीदर्शनविशुद्धये महाघ ।
अथ जयमाला।
ओवश्यक परीहाणि विशुद्धि, जाय साय णिम्मल वर बुद्धि । अणुकम्म पावइ सुर रिद्धि, मोक्खमग्ग संपज्जइ सिद्धि ॥१॥ आवश्यक दो कम्म विणासइ, आवश्यक दो सुगइ णिवासइ । आवश्यक दो णाण उपज्जइ, आवश्यक दो मोक्ख संपज्जइ ॥२॥ आवश्यक दो पावइ खण्ड, आवश्यक दो जाण विमण्ड । आवश्यक दो दंशण शुद्धि, आवश्यक दो निम्मल बुद्धि ॥३॥ आवश्यक दो दूगइ विचूक्कइ, आवश्यक दो सूगइ संपज्जइ । आवश्यक दो रोय विलज्जइ, आवश्यक दो मुगति सूरजह ॥४॥ आवश्यक दो षटभेद