________________
दि० जैन व्रतोद्यापन संग्रह ।
[१८७.
.. अथ जयमाला।
घत्ता। नतकल्पमहेन्द्रा नमितमुनींद्राश्चंद्राचित पदकमलवरा । नुतबुद्धिगणींद्रा दीप्तिदिनेंद्रास्तेजगंतु जिनवरनिकरा ।।
जय वृषभ वृषभ मुनि सेव्यपाद, जय नमित सुरासुर दिव्य नाद । जय अमलकमलदल नयनसार, जय अजित जिनेश्वर तरणतार ।।२।। जय संभव शंकर सुख निधान, जय अजरामर पद धर विमान । जय अभिनन्दन नन्दित मुनींद्र. जय सुरनर खेचर मही वितन्द्र ॥३॥ जय सुमति जिनेश्वर सुमतिकार, जय सुमनोमल गुणगण सुधार । जय रक्त कमलसम गात्र देव जय कमलापति यति विहित सेव ॥४॥ जय शोभन पाच सुपार्श्व राज, स्वस्तिक लांछन सुजिनपराज, । जय चन्द्रप्रभ वर चन्द्र गात्र, जय चन्द्र डित जिन परम पात्र ॥५॥ जय पुष्पदन्त सित पुष्पदन्त, जय मकर मुलांछन परम शांत । जय शीतल, शीतल वचन भङ्ग, जय द्रत कनकाम शरीर चङ्ग, ॥६॥ जय श्रेयो जिनवर परम धाम, जय विजित सुदुर्जय विकटकाम । जय वासुपूज्य वर महिष लक्ष, जय विजित सुदुर्जय मोह पच ।।७। जय बिमल विमल गुण निर्मिकार, जय प्रवर वराह सुलक्ष धार जय अनन्त परम गुजमनगरिष्ट, जय त्रिभुवनपति नुत पद वरिष्ट ॥८॥