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दि० जन व्रतोद्यापन संग्रह |
जला दिचन्द मसंदात पुष्पचारु । मैवेद्यदीपवर धूपफलैर्महार्घ ॥ नारायणो विजयकीर्तिगुणप्रसादात् । यच्छत्यनर्धममलं मुनिपुङ्गवेभ्यः ||
ॐ ह्रीं चतुर्दशगुणस्थानस्थित भव्यजीवेभ्यो महाघं० ।
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अथ जयमाला |
सिरि गुणगण ठाणा अमिय समाणा, भवियण मुनिवर बोधकरा ।
अइ सुमइ विहाणा मुणिप्रणभाणा, कुमविणासण दुरियहरा ॥ १ ॥
पठमं मिथ्यातह ठाण यहि भव्व राशि अनंत जिणेसर देव का |
चउदस बावण गणहर मुणिवर भव्य लहा ते बन्दामिय निम्मल निस्सय सिद्धि पहा || २ ||
सासादण वर दिठि भणा एक सम कोड़ि चार । जिणेसर देव का ||
चउदस बावण गणहर मुनिवर भव्य लहा ते वन्दामिय निम्मल निस्सय सिद्ध पहा || ३ || तिदिय ठाणे गाण भव्ववरा दो पंचासय कोढ़ि जिणेसर देव का | चउदसि बावण० ॥ ४ ॥